यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
रविवार, 28 अप्रैल 2024
'लाड़ली बहना' वाले राज्य से महिलाओं की अस्मिता पर उठे कुछ असहज सवाल... जिन पर उठे कुछ और सवाल...!!!
गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
राजनीति में ज्यादा ज़हर है या हमारी भोजन की थाली में?
By Jayjeet Aklecha
मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
तब तो NOTA के लिए बहुते क्रांतिकारी होगा!!
गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से भले ही भाजपा के प्रत्याशी मुकेश दलाल को निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया गया है और निर्वाचन आयोग ने उन्हें सर्टिफिकेट भी दे दिया है। फिर भी एक हाइपोथेटिकल स्थिति की कल्पना कर रहा हूं कि अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाता है और कोर्ट कहता है कि NOTA के होते हुए किसी को भी निर्विरोध नहीं चुना जा सकता, तब मामला कितना दिलचस्प हो जाएगा!!
सबसे बड़े मसले पर हमारी दोनों बड़ी पार्टियां एक राय! मगर ये बेहद शर्मनाक!
By Jayjeet
बुधवार, 17 अप्रैल 2024
UPSC : क्या 'सत्यमेव जयते' को याद रखेंगी हमारी सबसे चमकदार प्रतिभाएं?
बुधवार, 10 अप्रैल 2024
शुक्र है, चुनाव होते रहते हैं... इससे विकसित देशों के बर-अक्स हमें हमारी जमीनी हकीकत पता चलती रहती है...!!!
मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
राहुल का एक अहम सवाल.... मगर पहले खुद जवाब देना होगा!!!
By Jayjeet
इस शाश्वत सत्य से कौन इनकार करेगा कि जब आप सामने वाले पर एक उंगली उठाते हैं तो तीन उंगलियां आपकी ओर भी उठती हैं। कल मप्र के मंडला में राहुल गांधी की एक चुनावी सभा में यही दृश्य था। उन्होंने एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल पूछा था। सवाल यह था कि हिंदुस्तान की बड़ी कंपनियों के मालिकों में, उनके सीनियर मैनेजमेंट में, बड़े-बड़े पत्रकारों में, बड़े-बड़े एंकरों में आखिर आदिवासी कितने हैं? इसका जवाब भी खुद ही दिया- एक भी नहीं। आरोप रूपी यह सवाल मोदी सरकार पर लक्षित था, लेकिन चिलचिलाती धूप में इसकी बड़ी-सी छाया उनकी ही धवल टी-शर्ट को लगभग पूरा ढंक रही थी।
राहुल की कम से कम इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि वे बड़े अच्छे सवाल, बड़े अच्छे से उठाते हैं। और इससे भी अच्छी बात यह है कि सवाल उठाते हुए वे जाने या अनजाने में विपक्ष के साथ-साथ अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को भी कठघरे में खड़ा करने में कोहाही नहीं बरतते हैं। कल का सवाल भी कुछ इसी तरह का था। यह सवाल पूछते हुए एक उंगली तो उन्होंने मोदी सरकार पर उठाई थी, लेकिन तीन उंगलियां उन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर भी उठ रही थीं, जिनका ज्यादातर नेतृत्व उनके ही परिवार के पास रहा है।
मोदी सरकार से तो वैसे भी किसी सवाल के जवाब की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस सवाल का जवाब खुद राहुल भी देने का नैतिक साहस करेंगे? क्या वे जवाब देंगे कि आखिर 55 साल तक सत्ता में काबिज उनकी पार्टी की सरकारों ने भी आदिवासियों की हैसियत महज एक वोट बैंक से ज्यादा क्यों नहीं समझी? (बल्कि दलितों, और मुस्लिमों की भी)। तमाम सरकारों ने आदिवासियों और दलितों के लिए महज सरकारी नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित कर यह मान लिया और मनवा लिया कि वे प्रगति की राह पर आगे बढ़ जाएंगे। बेशक,आरक्षण से वंचित तबकों के बड़े हिस्से को एक हद तक आगे बढ़ाना संभव हो सका है, लेकिन घनघोर प्रतिस्पर्धा वाले कॉरपोरेट संसार में ये तरीके काम नहीं आ सकते। क्या कांग्रेस सरकारों ने इसके लिए उन्हें तैयार करने का प्रयास किया या तैयार करने की इच्छाशक्ति दिखाई?
मान लेते हैं, वह जमाना राहुल का नहीं था। लेकिन अब तो पार्टी को कमोबेश राहुल ही लीड कर रहे हैं। उन्होंने जो मोदी सरकार से पूछा, क्या उसका समाधान उनके पास है? इसके जवाब के लिए कांग्रेस का घोषणा-पत्र देखिए। अधिकांश वादे सरकारी नौकरियों में भर्ती और आरक्षण तक सीमित है, जबकि आने वाला दौर कॉरपोरेट का ही है। तो फिर महज चुनावी जुमलेबाजी से क्या हासिल होगा?
पुनश्च... मौजूदा मोदी सरकार अक्सर बड़े गर्व (आप चाहें तो अहंकार भी पढ़ सकते हैं) से कहती है कि हमने एक आदिवासी को राष्ट्रपति बनाया। 'बनाना' और 'बनना', इसमें जमीन-आसमान का फर्क है। कांग्रेस जब सत्ता में होती थी, तब वह भी कुछ ऐसे ही जुमलों का प्रयोग करती थी। जब तक हमारे राजनीतिक दल एहसान जताने वाले शब्दों से ऊपर उठकर वास्तविक सशक्तिकरण के प्रयास नहीं करेंगे, इन वर्गों का कुछ भी भला नहीं हो सकेगा और ये महज सियासी चारा बने रहेंगे। फिर चाहें कितने भी सवाल उठते रहे, उठाते रहें...!
सोमवार, 8 अप्रैल 2024
बुधवार, 3 अप्रैल 2024
शुक्र है, खास लोगों को पता तो चला कि आम लोगों के साथ क्या-क्या होता है...!!
By Jayjeet
रविवार, 24 मार्च 2024
शनिवार, 16 मार्च 2024
गब्बर, चुनाव और साम्बा की होशियारी...!
By Jayjeet Aklecha
गब्बर को गलतफहमी है कि 'होली कब है, कब है होली' जैसा कुछ कहने के बजाय 'चुनाव कब है, कब है चुनाव' कहने से उसे चुनाव का टिकट मिल जाएगा। टिकट दल बदलने से मिलता है, जुमले बदलने से नहीं। और उसे इस बात की और भी गलतफहमी है कि डकैत होना उसकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। डकैत की ड्रेस पहनने भर से टिकट मिल जाता तो इलेक्टोरल बॉन्ड की डकैती की जरूरत ही क्यों होती! सोचने की बात है...! गब्बर ने अपनी जात नहीं बताई... डकैत तो डकैत होता है। उसकी क्या जात और क्या पात? लो, ऐसी नैतिकता का ऐसा झंझट तो अपन वोटर लोग भी नहीं पालते और ये डकैत होकर पाले हुए हैं। शायद, इसीलिए नेताओं के बीहड़ों में इसके डकैतपने की कोई औकात नहीं है। तो टिकट कैसे मिलेगा, कैसे मिलेगा टिकट? भाईसाब, रामगढ़... मोबाइल में घुसे पड़े नल्ले साम्भा के मुंह से कुछ फूटा...। पहाड़ी की चोटी पर अब वह केवल नेटवर्क के मारे ही बैठता है। क्याssssss? रामगढ़ssssss। रामगढ़ का कनेक्शन बताइए और टिकट पाइएsssssssss। साम्भा भी उतना ही जोर से चिल्लाया। वाह, साम्भा के मुंह से पहली बार कोई कायदे की बात फूटी है। टीवी चैनलों पर न्यूज टाइप की चीजें देखकर आदमी ज्ञानी भी हो लेता है... मॉरल ऑफ द स्टोरी फ्रॉम द ग्रेट साम्बा...जिसके पास धेले का भी काम नहीं, वह न्यूज चैनलों पर एंटरटेनमेंट जरूर करें। बीच-बीच में गजब का ज्ञान भी मिल जाता है। चलते-चलते... कांग्रेस तो दो बोरी गेहूं के बदले ही टिकट देने को तैयार है, मगर साम्भा ने चेताया, भाई साब ले मत लेना, अभी तो आप जमानत पर बाहर है। वह भी जब्त हो जाएगी। एक तो कांग्रेस, ऊपर से ईडी का झमेला...। (देखो तो जरा साम्भा को, नीम और करेला की कहावत का इल्म भी आ गया... )
रविवार, 10 मार्च 2024
कांग्रेस की आत्मा तो अजर-अमर है! बस देह बदलकर भाजपा में प्रवेश कर रही है...!!
By Jayjeet Aklecha
नित दिन जब खबर आती है कि अमुक कांग्रेसी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली है तो यह भाजपा मुक्त भारत की दिशा में एक और ठोस कदम होता है। क्या कांग्रेसियों ने साजिश रच रखी है भाजपा को खत्म करने की? वाकई, राजनीति में कांग्रेसियों का कोई मुकाबला नहीं! ऐसा जाल बिछाया कि कांग्रेस मुक्त भारत करते-करते भाजपाइयों ने अनजाने में देश को भाजपा मुक्त कर दिया।
मैं उस भविष्य की ओर देख रहा हूं, जब देश में केवल दो पार्टियां होंगी - भाजपा (ओ) और भाजपा (सी) यानी भाजपा (ओरिजिनल) और भाजपा (कांग्रेस)। कई लोगों को आशंका और उम्मीद है कि भविष्य में हमारा भारत महान चीन की तर्ज पर एक पार्टी सिस्टम पर जा सकता है और वह पार्टी होगी भाजपा (सी)। यकीन मानिए, इसमें भाजपा की केवल देह होगी, भीतर आत्मा तो कांग्रेस की ही होगी।
आजादी के बाद कांग्रेस ने जो संघर्ष किया है, उसे भाजपा कभी नहीं समझ सकती।। शरद जोशी जी द्वारा गिनाए गए नैतिक पतन के तमाम आदर्श उसे स्वयं अपने हाथों से गढ़ने पड़े। भाजपा किस्मतवाली रही कि उसे नैतिक पतन के ये गुण विरासत में मिल गए। न उसे आजादी के लिए संघर्ष करना पड़ा और न ऐसे उच्च आदर्शों के लिए। बस, उसे कांग्रेस को अपने भीतर समाने की जरूरत थी। बेशक, यह बेहद मुश्किल था। पर भाजपा को साधुवाद! उसने कांग्रेस के गुणों को अपनाने में 10 साल भी नहीं लगाए।
आज अटल जी जहां कहीं भी होंगे, क्या सोच रहे होंगे? दु:खी हो रहे होंगे या खुश हो रहे होंगे? मुझे लगता है कि वे यह सोच-सोचकर खुद को भाग्यशाली मान रहे होंगे कि वे 'द पार्टी विद अ डिफरंस' की ऐसी मौत अपनी आंखों से देखने से बच गए। आडवाणीजी एक बार फिर से अटलजी की किस्मत पर रश्क कर सकते हैं...!
समापन भी शरद जोशी की पंक्तियों से ही... दाएं, बाएं, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी। इस देश में जो भी होता है, अंततः कांग्रेस होता है। जनता पार्टी (आज पढ़ें भारतीय जनता पार्टी) भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी।
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