यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
मंगलवार, 14 नवंबर 2023
सबसे पुरानी पार्टी के पुरातनपंथी और थके हुए वादे… न कोई इनोवेटिव आइडिया, न सियासी साहस!
गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023
हमास-इजरायल संघर्ष: इसे धर्म का मामला कतई ना बनाएं! यह विशुद्ध जियो-पॉलिटिकल इश्यू है, जिसमें बस्स, इंसानियत रौंदी जा रही है!!!
By Jayjeet Aklecha (जयजीत अकलेचा)
मंगलवार, 19 सितंबर 2023
'बांझन को पुत्र देत' ही क्यों? और फिर, एक पवित्र आरती में 'बांझन' जैसा असंसदीय शब्द भी क्यों?
By Jayjeet Aklecha
शुक्रवार, 8 सितंबर 2023
धर्म पर बातें करना अब नेताओं का पसंदीदा शगल! क्योंकि इससे सियासी पाप धोना ज्यादा आसान हो जाता है...!!!
बुधवार, 9 अगस्त 2023
गांधी जी को बार-बार नजरें झुकाने के लिए विवश न करें!!!
क्या बेहतर नहीं होगा कि तमाम नेतागण, चाहें वे किसी भी पार्टी के हों, महात्मा गांधी को अकेला छोड़ दें...? उन्हें बार-बार नजरें झुकाने के लिए मजबूर करने का क्या मतलब?
गुरुवार, 27 जुलाई 2023
नेताओं पर उंगली अवश्य उठाएं, मगर आज अपनी ओर उठीं इन चार उंगलियों पर भी एक नजर डाल लेते हैं...!
रविवार, 23 जुलाई 2023
देख लीजिए, हम तो नंगे थे ही, आप भी नंगे निकले!!!
By Jayjeet
सोमवार, 17 जुलाई 2023
शहरों का नाम क्यों न नदी कर दें...!
सोमवार, 19 जून 2023
इस तस्वीर के मर्म को समझिए... समझ जाएंगे कि मर्यादा पुरुषोत्तम का मतलब क्या है!
रविवार, 18 जून 2023
आदिपुरुष: मनोज मुंतशिर के बयान तो उनके डायलॉग्स से भी एक कदम आगे!! कुतर्कों की पराकाष्ठा है ये...
राही मासूम रज़ा V/S मनोज मुंतशिर...!!
Jayjeet Aklecha
बुधवार, 14 जून 2023
यथा जनता तथा नेता!
Jayjeet Aklecha/जयजीत अकलेचा
सभी विधर्मी पार्टियों को 'काफ़िर' भाजपा का शुक्रगुजार होना चाहिए। चुनाव जीतने का सभी को बड़ा आसान-सा नुस्खा थमा दिया है। कहीं मंदिर चले जाओ, कहीं घाट पर आरती उतार आओ। कभी मंदिरों का निर्माण करवा दो, कभी किसी देवता के नाम पर करोड़ों रुपए का परिसर बनवा दो। लैटेस्ट आकर्षण भांति-भांति के बाबाजी हैं। किसी बाबाजी के चरणों में गिर जाओ, कभी उनसे अपने क्षेत्र में कथा करवा लो। सभी बाबाजी पार्टी लाइनों से ऊपर उठे हुए हैं। वैसे पार्टियों के बीच की ही लाइनें मिट गई हैं तो ये बेचारे बाबा बेमतलब में बंटकर अपनी मोह-माया का नुकसान क्यों करें!
शनिवार, 10 जून 2023
जहां वाकई 'जीरो टॉलरेंस' की जरूरत, वहां साबित हो रहे हैं 'जीरो'! तो बाकी जगह हीरोगीरी करने का क्या फायदा?
By Jayjeet Aklecha (जयजीत अकलेचा)
दो दिन पहले
की खबर है। भोपाल में एक निर्माणाधीन सड़क के बीच में आ रहे पीपल-बरगद के दो पेड़ों को
काटा जाने वाला था। लेकिन क्षेत्र की जागरूक महिलाएं आगे आईं, विरोध किया। और लाड़ली
बहनाओं के भाई ने तुरंत एलान कर दिया- पेड़ नहीं कटेंगे, भले ही सड़क का काम रुक जाए।
विकास पर हरियाली को वरीयता! वाकई प्रशंसनीय बात थी। राज्य के कर्णधारजी हर दिन रोजाना
एक पौधा लगाते हैं। उन्हें यह उपक्रम करते हुए ढाई साल हो गए हैं। बेशक, यह भी प्रशंसनीय
है।
लेकिन जब
जंगल के जंगल साफ होने की खबरें आती हैं (देखें साथ लगी भयावह तस्वीर) तो उक्त सारी
प्रशंसाओं पर पानी फिर जाता है। तब ये प्रशंसाएं महज गुलदस्ते में लगे प्लास्टिक के
फूल की माफिक नजर आने लगती हैं। क्या कोई मान सकता है कि जंगल साफ हो रहे हों और जिम्मेदार
अफसरों को खबर न लगे? ये वही मुख्यमंत्री हैं, जिनके राज्य के एक कलेक्टर ने दो दिन
पहले लाड़ली बहना योजना में लापरवाही करने पर दो आंगनवाड़ी कर्मचारियों को जीरो टॉलरेंस
दिखाते हुए तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया था। लेकिन जहां असल जीरो टॉलरेंस दिखाने
की जरूरत है, वहां यह सरकार, उसके कर्णधार और कर्णधार के बड़े-बड़े अफसर महज जीरो साबित
हो रहे हैं।
सरकार और
सरकार में बैठे लोग स्वयं को बार-बार सनातनी होने का दावा करते हैं, और उनके दावों
पर कोई शक भी नहीं। लेकिन सनातनी होने का मतलब केवल धर्मांतरण पर हवा में मुटि्ठयां
तानना भर या एक स्कूल को नेस्तनाबूद करना भर नहीं है। अगर आप सच्चे सनातनी हैं तो प्रकृति
को नाश करने वालों के खिलाफ भी मुटि्ठयां तानें। जंगलों को तबाह करने वालों को तबाह
करें। क्या किसी भी सनातनी को बताने की जरूरत है कि हिंदू मायथोलॉजी के अनुसार देवी
यानी शिवजी की अर्धांगिनी ही ‘प्रकृति’ हैं! आखिर सनातनी लोग प्रकृति के साथ
छेड़छाड़ को बर्दाश्त कैसे कर सकते हैं? कैसे कर रहे हैं?
याद रखिए,
महाकाल धैर्यवान हैं, लेकिन उनके भी धैर्य की एक सीमा तो होगी! वे बीच-बीच में धैर्य
खोने भी लगे हैं। यह दिखने लगा है। हर असामान्य आंधी-तूफान में मुझे उनके गुस्से की
झलक नजर आती है। आपको भी आती होगी। लेकिन उन्हें अवतरित होने के लिए विवश मत कीजिए।
वे अपनी प्रकृति की सार-संभाल करने की जिम्मेदारी हमें सौंप गए हैं।
#ShivrajSinghChouhan #MP
गुरुवार, 8 जून 2023
कैसे पता चलता है कि मानसून आ गया है?
कैसे पता चलता है कि मानसून (Monsoon) आ गया है? देख सकते हैं ये वीडियो...
अवकाश कैलैंडर के बजाय 'वर्किंग डे' का कैलेंडर!
अगर ऐसा ही चलता रहा (और चलेगा ही) तो दो-चार साल में मप्र में शासकीय अवकाश कैलैंडर जारी करने के बजाय 'वर्किंग डे' का कैलेंडर जारी करना पड़ेगा। इसमें बताया जाएगा कि सरकारी कर्मचारियों को किस महीने एक या दो दिन दफ्तर आना है।