शनिवार, 5 जुलाई 2014

हर व्यक्ति को मिलेगा पानी, देश भर में बिछाई जाएंगी लीकेज वाली पाइप लाइनें

कांग्रेस ने बताया जनविरोधी कदम, कहा- मिनरल वॉटर वालों का धंधा हो जाएगा चौपट

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

Water leakage Mission.

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने हर तबके तक जल पहुंचाने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत देशभर में बिछी पानी की पाइप लाइनों को लीक करने का फैसला किया है। जहां पाइप लाइनें नहीं हैं, वहां नई पाइप लाइनें बिछाकर उनमें लीकेज की प्रक्रिया शीघ्र ही शुरू की जाएगी। यह अहम फैसला शनिवार सुबह कैबिनेट की विशेष बैठक में लिया गया। उधर, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे जनहित विरोधी कदम बताते हुए कहा है कि इससे मिनरल वाॅटर बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का धंधा चौपट हो जाएगा।
केंद्रीय मंत्री जयशंकर प्रसाद ने पत्रकारों को बताया कि जलधर समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने लीकेज सिस्टम को पूरे देशभर में लागू करने का निर्णय लिया है। इस समिति ने अपनी बारह हजार पेज की रिपोर्ट में कहा है कि देश की आधी आबादी फूटे हुए पाइपों से रिसते पानी से ही अपनी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति करती है। रिपोर्ट में 11,998 पेजों पर फूटी पाइप लाइनों की जीवंत तस्वीरें हैं, जिनमें लोगों को पाइपों से लीक हो रहे पानी को बाल्टियाें, मटकों और बोटलों में भरते हुए दिखाया गया है। ये तस्वीरें जम्मू से लेकर कन्याकुमारी और बड़ौदा से लेकर कोलकाता तक के शहरों की है। रिपोर्ट में इस बात पर संतोष व्यक्त किया गया है कि देश के अधिकांश हिस्सों में पाइप लाइनों में लगातार रिसाव होता रहता है, जिससे नागरिकों को पानी की कभी किल्लत महसूस नहीं होती।
प्रसाद ने बताया कि उनकी सरकार ने वर्ष 2018 तक सभी को पानी पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए केंद्र सरकार वॉटर लीकेज मिशन लाने जा रही है। इसके तहत हर राज्य में कम से कम पांच हजार किमी लंबी पाइप लाइनों को टूटा-फूटा बनाया जाएगा, ताकि एक बड़ी आबादी तक पानी की पहुंच हो सके। उन्होंने कहा कि चूंकि पानी राज्यों का विषय है। ऐसे में राज्य सरकारों से भी इस संबंध में आग्रह किया जाएगा कि वे अपने-अपने राज्यों में जितना संभव हो सके, पाइप लाइनाें से हो रहे रिसाव को रोकने की कोशिश न करें। व्यापक चर्चा के लिए राज्यों के जल संसाधन मंत्रियों की एक बैठक भी जल्दी ही बुलाई जा रही है।
कांग्रेस ने बताया जनविरोधी, केजरीवाल ने भी जुबान खोली : सरकार के इस फैसले का विरोध भी शु्रू हो गया है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे जनविरोधी बताते हुए कहा कि इससे उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को काफी नुकसान होगा, जो मिनरल वॉटर के धंधे में लगी हुई है। जब लोगों को आसानी से पानी उपलब्ध हो सकेगा, तो इन कंपनियाें का पानी कौन खरीदेगा? इधर, काफी दिनों से चुप बैठे अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ऐसा केवल अंबानी को लाभ पहुंचाने के मकसद से किया जा रहा है, ताकि अच्छे पाइपों से गैस की आपूर्ति घरों तक की जा सके।

यूनेस्काे की विश्व विरासत सूची में शामिल हुआ व्यापमं

Now Vyapam is World Heritage Site.

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

भोपाल। करोड़ों रुपए के घोटालों से चर्चा में आए मप्र व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के भोपाल स्थित मुख्यालय को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल कर लिया गया है। इस संबंध में राज्य सरकार के एक प्रस्ताव को यूनेस्को ने मंजूरी दे दी है। सरकार को उम्मीद है कि इससे मप्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। सांची, खजुराहो और भीमबैठका के बाद यह प्रदेश का चौथा स्थल है जो विश्व विरासत सूची में शामिल हुआ है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भर्ती घाेटालों में आरोपी राज्य के एक पूर्व मंत्री की गिरफ्तारी के तत्काल बाद ही एक दूरदर्शी अफसर ने सरकार को व्यापमं मुख्यालय का इस्तेमाल प्रदेश व यहां की जनता के हित में करने का सुझाव दिया था। इस सुझाव के बाद ही मप्र पर्यटन विकास निगम के अफसरों ने विश्व विरासत स्थल का दर्जा देने वाली सर्वोच्च संस्था यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी के समक्ष इसका प्रजेंटेशन दिया। सूत्रों के अनुसार यूनेस्को ने राज्य सरकार के इस आवेदन से पहले ही स्वत: संज्ञान लेते हुए व्यापमं को विश्व विरासत स्थल का दर्जा देने का मन बना लिया था। इसलिए मप्र सरकार का आवेदन आते ही यूनेस्को की कमेटी ने इस पर मोहर लगा दी।
प्रदेश के पर्यटन मंत्री ने यूनेस्को के इस निर्णय का स्वागत करते हुए उम्मीद जताई है कि इससे मप्र विश्व पर्यटन के नक्शे पर तेजी से उभर सकेगा। उन्होंने कहा कि उनकी योजना व्यापमं के साथ ही कई अन्य विभागाें के मुख्यालयों को जोड़कर एक सर्किट डेवलप करने की है, ताकि पर्यटक एक साथ मप्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का लुत्फ उठा सकें।
अलौकिक है व्यापमं की बदसूरती : यूनेस्को
यूनेस्को की वेबसाइट पर इस संबंध में अधिसूचना जारी करते हुए लिखा गया है – ‘पिछले कुछ सालों के दौरान ही व्यापमं ने जो कुख्याति अर्जित की है, वह अद्भुत है। इसकी बदसूरती अलौकिक है। यहां के एक-एक बाबू को जिस तरह से तराशकर भ्रष्टाचार में लिप्त किया गया है, वह यहां आने वाले पर्यटकों को असीम घृणा व विरक्ति से भर देता है। इसके गुंबद पर विद्यमान भ्रष्ट अफसरों की करतूतें इस बात का प्रतीक है कि इस स्थल को भ्रष्टाचार के एक पूजनीय स्थल के रूप में विकसित करने में कितना परिश्रम किया गया।’

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

अंतरिक्ष में महंगाई और सैटेलाइट की नजर

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

दो दिन पहले इसरो ने पांच विदेशी सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में क्या उतारे, सरकार में बैठे एक अफसर के दिमाग में एक इनाेवेटिव आइडिया घूमने लगा। उन्होंने महंगाई पर नजर रखने के लिए सरकार पर एक सैटेलाइट छोडऩे का आइडिया पटक मारा। हमें समझ में नहीं आया कि आखिर महंगाई का सैटेलाइट से क्या संबंध हो सकता है! ये अफसर हमारे मित्र हैं, इसलिए यही समझने हम उनके पास पहुंच गए।
'सालों पहले महंगाई बहुत हुआ तो तीसरे-चौथे माले तक पहुंचती थी। सरकार की जब इच्छा होती, वह हाथ पकड़कर नीचे उतार देती। लेकिन अब तो यह धरती की कक्षा तक पहुंच गई है। अंतरिक्ष में धूमकेतु की तरह घूम रही है और अब उसे पकड़कर नीचे लाना तो दूर, उस पर नजर तक रखना मुश्किल हुआ जा रहा है। सैटेलाइट ही यह काम कर सकता है।' उन्होंने हमें समझाया।
'लेकिन फायदा क्या होगा?' हमने पूछा।
'देखो, महंगाई अंतरिक्ष में जा रही है। यह तो किसी के रोकने से रुकने वाली नहीं। लेकिन सरकार कम से कम उस पर नजर तो रख सकती है। इसके लिए वह इसरो की मदद ले सकती है। सैटेलाइट की आंख से भला कौन बच सका है। सरकार अपने कुछ कारिंदों को बिठा देगी। वे हर समय स्क्रीन पर नजरें गढ़ाए रखेंगे। अब वह चांद पर चली जाए, तब भी सरकार की कड़ी नजर हर समय उस पर रहेगी।'
'लेकिन इसमें तो बहुत खर्च आ जाएगा?'
'देखो, इस समय हमारी प्राथमिकता महंगाई है, इसलिए कितना भी खर्चा आए, हमें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए।'
'लेकिन कोई और रास्ता भी तो निकल सकता है, थोड़ा सस्ता! क्या दूरबीन से काम नहीं चल सकता?'
पहले तो हमारे ये अफसर मित्र इस मिडिलक्लास टाइप आइडिया पर मुस्कुराए। फिर बोले, 'चल तो सकता है, लेकिन एक दिक्कत हो सकती है', कुछ दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कहा। समस्याओं के समय बड़े सरकारी अफसर दार्शनिक हो जाते हैं। यही उन्हें शोभा भी देता है। 'दिक्कत यह कि सरकार के पास आते ही दूरबीनें अपना स्वाभिमान ताक पर रख देती हैं। बस सरकार की ही जी-हुजूरी में लग जाती हैं। अब वे वह नहीं दिखाती जो दिख रहा है, बल्कि वह दिखाती है जो सरकार देखना चाहती है।' मित्र अफसर अपने अनुभव के आधार पर बोले। दूरबीन बनने का उनका सालों का अनुभव रहा है।
'ओह, यह तो गंभीर बात है। वैसे हमारे पास एक और आइडिया है।' उन्होंने जिज्ञासावश हमारी ओर देखा।
'सबसे अच्छा आइडिया तो यह है कि सरकार आंखें ही बंद कर लें। इससे न उसे सैटेलाइट छोडऩा पड़ेगा, न दूरबीनों की सेवाएं लेनी होगी।'
'वाह! क्या आइडिया है।' सुनकर ही वे गदगद हो गए। वैसे भी सरकार को और भी कई जरूरी काम हैं। महंगाई का क्या! वे इस आइडिए को सरकार के साथ शेअर करने अपने दफ्तर की ओर चल दिए।
कार्टून : गौतम चक्रवर्ती

शिवराज सिंह की सशर्त संन्यास की घोषणा से आफरीदी गदगद

पत्र लिखकर कहा- मैं इस कठिन घाेषणा में आपके साथ हूं

 

जयजीत अकलेचा / Jayjeet Aklecha

वेलडन शिवराज !
भोपाल।
पाकिस्तान के महान आलराउंडर और क्रिकेट से कई बार संन्यास ले चुके शाहिद आफरीदी ने मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस जज्बे को सलाम किया है, जिसमें उन्होंने सशर्त संन्यास लेने की घोषणा की है।
मुख्यमंत्री को भेजे गए एक पत्र में आफरीदी ने लिखा है, मैंने किक्रेट से कई बार संन्यास लिया है। यह बहुत ही कठिन निर्णय होता है। लेकिन मुझे यह बताते हुए गर्व का अनुभव हो रहा है कि जितना कठिन निर्णय संन्यास लेने का होता है, उतना ही आसान संन्यास से वापसी का होता है। हालांकि आप हॉकी के ज्यादा प्रशंसक हैं, लेकिन फिर भी आपको ज्ञात होगा ही कि मैंने कितनी बार ऐसा कठिन निर्णय लिया और कितनी बार आसानी से अपने निर्णय को उलट दिया। आपने इस कठिन निर्णय को लेने की जो घोषणा की है, मैं उससे गदगद हूं और उम्मीद करता हूं कि अगर संन्यास की नौबत आई भी तो इंशा अल्ला, आप अपने इस संकल्प को तोड़ने में पीछे नहीं रहेंगे।
दिग्विजय सिंह का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा, “आपके ही राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री, शायद दिग्विजय सिंहजी ने भी मप्र की राजनीति से दस साल के लिए संन्यास की घोषणा की थी। इसके बाद भी वे सक्रिय राजनीति में बने रहे। आप उनसे भी प्रेरणा ले सकते हैं कि रिटायरमेंट का ऐलान करना कितना कठिन होता है, लेकिन बाद में ऊपरवाला सब ठीक कर देता है।”
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने यहां बुधवार को विधानसभा में कहा था कि अगर व्यापमं घाेटाले में वे दोषी पाए गए तो राजनीति और जीवन से संन्यास ले लेंगे।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने ऐसा पत्र मिलने की पुष्टि तो की है, लेकिन यह कहकर उस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया कि पत्र में लिखी गई हिंदी में वर्तनियों की ढेर सारी अक्षम्य गलतियां हैं। यह पत्र शायद किसी हिंदीभाषी से फोन पर बोलकर लिखवाया गया प्रतीत होता है।

मप्र में भर्ती परीक्षाओं के दलालों ने फीस बढ़ाई, जोखिम के मद्देनजर बीमा की भी मांग

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

भोपाल। मप्र में भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी की जांच में तेजी आने और इस मामले में हुई गिरफ्तारियों को देखते हुए दलालों ने अपनी दलाली फीस में भारी बढ़ोतरी कर दी है। सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मेडिकल की सीट में हुई है।
यह खुलासा हिंदी सटायर न्यूज सर्विस द्वारा किए गए एक स्टिंग अॉपरेशन में हुआ है। एसटीएफ की जांच के चलते इस समय सभी दलाल भूमिगत हो चुके हैं और वे अपने केवल कुछ खास लोगों के ही संपर्क में हैं। इस स्टिंग में एक बड़े दलाल नेटवर्क के सरगना ने स्वीकार किया कि मप्र में सरकार के अचानक सक्रिय होने का असर उनके बिजनेस पर पड़ना तय है। उसने कहा, 'अब इसमें पकड़े जाने का जोखिम भी बढ़ गया है। और अगर हमारा एक भी आदमी पकड़ा जाता है तो उसके लिए वकील की फीस, पुलिस के साथ सेटिंग इत्यादि पर खर्चा होना लाजिमी है। इसलिए हमें मजबूरी में अपनी फीस में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है।' सबसे ज्यादा बढ़ाेतरी मेडिकल सीट में की गई है। उसे अब 80 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ रुपए कर दिया गया है। सब-इंस्पेक्टर जैसे पदों के लिए पांच से सात लाख रुपए तक की वृद्धि प्रस्तावित है। एक दूसरे दलाल ने फीस में बढ़ोतरी के लिए सीधे-सीधे राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उसका कहना था कि यह सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है जिसके कारण हमें फीस बढ़ानी पड़ी है। इसका खामियाजा अब आम लोगों को भुगतना पड़ेगा।
रिस्क का बीमा करवाने की मांग : इस बीच, मप्र दलाल संघ ने अपने गुप्त ठिकाने से जारी एक विज्ञप्ति में सरकार से दलालों का बीमा करवाने की मांग की है। उसका कहना है कि दलाल इतनी मेहनत करके पेपर हासिल करते हैं। उन्हें पेपर सेटर्स को भारी पैसा चुकाना पड़ता है। फिर कई नेताओं, पुलिस अफसरों का भी हिस्सा बंधा रहता है। ऐसे में अगर कोई दलाल पकड़ में आ जाता है तो उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। इसलिए सरकार का दायित्व बनता है कि ऐसी विषम परिस्थितियों में उसकी क्षतिपूर्ति हो सके। संघ ने कहा कि अगर सरकार पहल करे तो दलाल भी बीमा प्रीमियम में अपनी ओर से एक हिस्सा मिलाने को तैयार हैं।
इस पर सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया तो नहीं आई है, लेकिन एक मंत्री ने आश्वस्त किया है कि दलालों के वाजिब हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

बुधवार, 2 जुलाई 2014

शंकर पुणतांबेकर का व्यंग्य - आम आदमी

 शंकर पुणतांबेकर/ Shankar Puntambekar

 शंकर पुणतांबेकर/ Shankar Puntambekar

 नाव चली जा रही थी।

मंझदार में नाविक ने कहा, 'नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।'

अब कम हो जाए तो कौन कम हो जाए? कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे : जो जानते थे उनके लिए भी तैरकर पार जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग थे - डॉक्टर, अफसर, वकील, व्यापारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता के अलावा आम आदमी भी। डाक्टर, वकील, व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं।

उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला, 'मैं जब डूबने को हो जाता हूूं तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूं?'

जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा, 'आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे।'

नेता ने कहा, 'नहीं-नहीं ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मैं देखता हूं उसे। मैं भाषण देता हूं। तुम लोग भी उसके साथ सुनो।'

नेता ने जोशीला भाषण आरंभ किया जिसमें राष्ट्र, देश, इतिहास, परंपरा की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊंचा कर कहा, 'हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे... नहीं डूबने देंगे... नहीं डूबने देंगे...।

सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा।

Short version of आम आदमी

सोमवार, 30 जून 2014

मिनिस्टर को सांप ने डसा, किसने देखा!

- सांपनाथ-नागनाथ संघ ने डसने संबंधी मंत्री के आरोपों को मनगढ़ंत बताया।

- कहा- नेताओं और सर्पों के बीच दूरी बढ़ाने के लिए रची जा रही है साजिश, सीबीआई जांच की मांग।

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

सांपनाथ-नागनाथ संघ के अध्यक्ष डॉ कोबरानाथ
भोपाल।
'मिनिस्टर को सांप ने डसा, किसने देखा!' यह सवाल किसी और ने नहीं, सांपनाथ-नागनाथ संघ ने उठाया है। वह मीडिया में प्रकाशित उन खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहा था जिनमें मप्र के एक मंत्री को सांप द्वारा डसने की बात सामने आई है। सांपनाथ-नागनाथ संघ ने इस खबर का खंडन करते हुए कहा है कि यह नेताओं और सर्पों के बीच दूरी पैदा करने की एक साजिश है। मंत्री इसी साजिश का शिकार होकर हम पर ऐसे मनगढ़ंत आरोप लगा रहे हैं।
मप्र के एक मंत्री ने भोपाल में आरोप लगाया था कि शनिवार-रविवार की देर रात को उनके बंगले में किसी सर्प ने उन्हें डस लिया। हालांकि उनके बंगले से बाद में कोई भी सांप जिंदा या मुर्दा बरामद नहीं किया गया। सांपनाथ-नागनाथ संघ के अध्यक्ष डॉ कोबरानाथ ने सोमवार को एक निजी टीवी चैनल के साथ बातचीत में कहा कि नेता प्रजाति के लोगों के साथ हमारे अच्छे संबंध रहे हैं। जहां भी हमें मौका मिला, हमने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की सेवा की। यहां तक कि हमने उन्हें अपनी उपाधि तक देने में कोताही नहीं की। इसके बावजूद एक नेता हम पर मनगढ़ंत आरोप लगा रहा है। उन्होंने आशंका जताई कि मंत्री किसी के बहकावे में आकर ऐसे तुच्छ आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने सीबीआई से इस पूरे मामले की जांच करवाने की मांग की है।
आखिर निशान किसके हैं?
मंत्री ने अपने अाराेपों के सबूत के तौर पर कहा है कि उनके दाहिने हाथ की अंगुली में दांतों के निशान बने हुए हैं जो साबित करता है कि उन्हें किसी न किसी सांप ने डसा है। इस पर एक सर्प ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मप्र में इस समय व्यापम घोटाला हावी है। जगह-जगह उसके तार बिखरे हुए हैं जो कई लोगों को चुभ रहे हैं। हो सकता है यह निशान ऐसे ही किसी तार से हुआ हो और मंत्रीजी ने किसी सांप पर आरोप मढ़ दिया हो। हालांकि इसका खुलासा तो जांच से ही हो पाएगा।

रविवार, 29 जून 2014

मनुष्यों की अमरता और देवताओं की चिंता

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha


जबसे नारदजी वह उड़ती-उड़ती खबर लाए, तभी से देवलोक में खलबली मची हुई है। आसन्न संकट पर विचार करने के लिए आनन-फानन में देवताओं की कार्यकारी समिति की बैठक बुलाई गई, जिसमें नारदजी को विशेष रूप से तलब किया गया था।
‘क्या यह सच है कि मानव अगले 40 सालों में अमर हो जाएगा?’ नारदजी से पूछा गया।
‘देखिए, खबर की पुष्टि तो आप लोग कीजिए। इतना भी नहीं कर सकते तो काहे के भगवान! मुझे किसी ने बताया तो मैंने आपको बता दिया।’ नारदजी बेफ्रिकी वाले अंदाज में बोले।
‘नारदजी कोई खबर लाए हैं तो कहीं न कहीं तो सच्चाई होगी ही।’ समिति के एक सदस्य बोले।
‘हमें किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। क्यों न इस मामले में एक उपसमिति गठित कर दी जाए।’ एक अन्य सदस्य बोले। इनकी नारदजी से कभी नहीं बनी। इसलिए उन्होंने मौका देखकर चौका जड़ दिया।
‘यदि हम इसी बात पर उलझे रहे कि क्या सच है और क्या झूठ तो मूल मुद्दे से भटक जाएंगे।’ समिति के अध्यक्ष ने कहा। उन पर हुई पुष्पवर्षा इस बात का संकेत थी कि अध्यक्ष की बातों से अधिकांश देवता सहमत हैं। इसलिए बैठक की कार्यवाही आगे बढ़ी। एक अन्य सम्मानित सदस्य ने चर्चा के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘यदि मनुष्य अमर हो गया तो इससे हमारा महत्व कम हो जाएगा। आखिर मनुष्य का सबसे बड़ा कंसर्न तो उसकी जिंदगी ही होती है। उसी की खातिर वह हमारी शरण में आता है।’
‘देखिए, हमें चिंता अपने महत्व की नहीं करनी चाहिए। जिसको मानना है वह तो हमें मानेगा ही। मुद्दे की बात यह है कि यदि सभी लोग अमर होने लग गए तो धरती का क्या होगा?’ अध्यक्ष ने चिंता जताई।
‘धरती को गोली मारो। मेरा और मेरे यमदूतों का क्या होगा?’ यह यमराज की आवाज थी। हालांकि वे समिति के सदस्य नहीं थे, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए स्वयं ही बिन-बुलाए मीटिंग में चले आए थे। उन्हें अपने और यमदूतों के बेरोजगार होने की चिंता सता रही थी।
‘मैं यमजी की बातों से सहमत हूं। हमें पहले अपना घर देखना चाहिए, फिर धरती।’ ये चित्रगुप्तजी थे। दरअसल, उनकी चिंता की एक बड़ी वजह यमदूतों की यूनियन भी थी। ये झंडा-बैनर लेकर आकाश में उतर आए तो उन्हें संभालेगा कौन?
तभी बातचीत के सिलसिले को ब्रेक करते हुए एक तेजस्वी किस्म के देवता उठे, ‘आप लोग नाहक ही परेशान हो रहे हैं। हमें अमृत कलश पाने के लिए असुरों से लड़ना पड़ा था। मनुष्य के असुर तो उसके अंदर ही हैं। उसे अमर होने के लिए अपने अंदर वाले असुरों से लड़ना होगा जो और भी मुश्किल है। एक मरेगा तो दूसरा पैदा हो जाएगा। इसलिए यकीन मानिए, मनुष्य अमर नहीं होने वाला।’ 
इस देवता की बुद्धिमत्ता पर अधिकांश को यकीन था। इसलिए कार्यकारी समिति ने भी उनकी राय पर अपनी मोहर लगा दी। मीटिंग समाप्त हुई। सभी सदस्यों ने सोमरस पिया और अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान कर गए।

जुगाड़ तकनीक के क्षेत्र में भारत शुरू करेगा अपना नोबेल पुरस्कार

हर साल 100 जुगाड़बाजों को प्रदान किए जाएंगे ये पुरस्कार

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

नई दिल्ली। देश में शोध के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के सूखे को दूर करने के लिए भारत सरकार ने अपना खुद का नोबेल पुरस्कार शुरू करने का फैसला किया है। यह पहल राष्ट्रपति की उस चिंता के बाद की गई है जिसमें उन्हाेंने कहा था कि पिछले आठ दशक में देश को शोध के क्षेत्र में एक भी नोबेल नहीं मिलना  दुर्भाग्यपूर्ण है।
केंद्रीय विज्ञान मंत्रालय के अनुसार 'इंडियन नोबेल प्राइज इन जुगाड़ टेक्नोलॉजी' के नाम से शुरू होने वाले इस पुरस्कार का खाका तैयार कर लिया गया है। इसे संक्षेप में ‘नोबेल प्राइज’ ही कहा जाएगा। यह पुरस्कार हर साल उन 100 लोगों को प्रदान किया जाएगा जिन्होंने मौजूदा उपलब्ध संसाधनों से जुगाड़ कर देसी आविष्कार किए हों। इससे भारत एक झटके में ही नोबेल पुरस्कार का सूखा खत्म कर लेगा। पुरस्कार में ट्रॉफी, शॉल, श्रीफल और रेलवे में द्वितीय श्रेणी की यात्रा का पास प्रदान किया जाएगा।
मंत्रालय की एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि नोबेल प्राइज कमेटी ने पिछले आठ दशकों में शोध के क्षेत्र में एक भी भारतीय को नोबेल पुरस्कार के योग्य नहीं पाया। इससे साफ जाहिर होता है कि कमेटी कितने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कार्य करती है। कमेटी ऐसे अपात्र व अक्षम लोगों से भरी पड़ी है जिनमें भारतीयों की जुगाड़ प्रवृत्ति को परखने की क्षमता का अभाव दृष्टिगोचर होता है। हम भविष्य में इस कमेटी द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार को नकारते हुए अपना खुद का नोबेल शुरू करने की पहल कर रहे हैं। अभी इसे भारत भूमि पर होने वाले जुगाड़ तक सीमित रखा जाएगा, लेकिन भविष्य में इसमें सार्क देशों के जुगाड़ को भी शामिल करने पर विचार किया जा सकता है।

शनिवार, 28 जून 2014

मप्र में भर्ती परीक्षाएं समाप्त, लॉटरी से चुने जाएंगे योग्य उम्मीदवार

मुख्यमंत्री ने इसे बताया सिस्टम में पारदर्शिता लाने की दिशा में बड़ा कदम।

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
मेरी लॉटरी लग गई। आपको बाबाजी का ठेंगा।

भोपाल। मप्र में अब किसी भी पद के लिए कोई भर्ती परीक्षा नहीं हाेगी। तमाम भर्तियां लॉटरी सिस्टम के जरिए की जाएंगी। इसका फैसला शुक्रवार देर रात राज्य कैबिनेट की एक आपातकालीन बैठक में लिया गया। माना जा रहा है कि यह फैसला आगामी विधानसभा सत्र के मद्‌देनजर लिया गया है ताकि सदन में विपक्ष के आराेपों का करारा जवाब दिया जा सके। मुख्यमंत्री ने इसे सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ाने वाला कदम बताया है।
सूत्रों के अनुसार व्यापम और मप्र लोकसेवा आयोग (एमपी-पीएससी) परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोपों के चलते संघ राज्य सरकार पर भर्ती परीक्षा व्यवस्था में आमूल-चुल बदलाव करने का दबाव बना रहा था। इसी के मद्देनजर यह बैठक बुलाई गई थी। बैठक में प्रदेश की आवासीय परियोजनाओं में मकान आवंटन से जुड़े एक पूर्व सीनियर अफसर ने भर्ती परीक्षाओं में भी लाॅटरी सिस्टम को लागू करने का सुझाव दिया। इस संबंध में कैबिनेट के समक्ष दिए अपने प्रजेंटेशन में उन्होंने दावा किया कि यह इतना फुलप्रूफ सिस्टम है कि कोई इसमें एक धेले की भी गड़बड़ी नहीं कर सकता। उनके दावे के बाद कई मंत्री इसे लागू करने के पक्ष में नहीं दिखे, लेकिन मुख्यमंत्री ने इस पर तत्काल सहमति जता दी।
इससे पहले कैबिनेट के सामने यह भी प्रस्ताव लाया गया था कि हर परीक्षा के पंद्रह दिन पहले व्यापम और एमपी-पीएससी अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर तमाम प्रश्न-पत्र लोड कर दें। साथ ही प्रश्न-पत्रों के जवाब भी वेबसाइट पर ही मुहैया करवाए जाएं। लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि अगर किसी एक परीक्षार्थी ने भी दावा कर दिया कि उसके कंप्यूटर पर प्रश्न-पत्र अौर उनके उत्तर डाउनलोड नहीं हो रहे हैं तो अनावश्यक विवाद पैदा हो जाएगा। इससे विपक्ष को आरोप लगाने का मौका मिल जाएगा।
बाद में पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि अब तक जो हुआ, उसकी तो एसटीएफ जांच कर रही है। वह दूध का दूध पानी का पानी कर देगी, लेकिन हम आगे की परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। इसी के तहत लॉटरी सिस्टम को लागू किया जा रहा है। इससे योग्य प्रतिभाओं को चुनने में मदद मिलेगी और सबके साथ न्याय हो सकेगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि नियमानुसार इसमें भी आरक्षण के प्रावधान लागू किए जाएंगे।

शुक्रवार, 27 जून 2014

प्रधानमंत्री की अपील पर जमाखोरी रोकने आगे आए जमाखोर

- सरकार आग्रह करे तो हम राष्ट्रहित में अपने कुछ हितों की कुर्बानी देने को तैयार : जमाखोर महासंघ

- खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने महासंघ की पहल का स्वागत किया, कहा-जमाखोरों की मदद से थामेंगे महंगाई


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
इतनी जमाखोरी अच्छी बात नहीं!

नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमाखोरों के खिलाफ राज्यों से कड़ी कार्रवाई करने की अपील के समर्थन में देश के बड़े जमाखोर भी आगे आए हैं। जमाखोरी पर नियंत्रण रखने के संबंध में उन्हाेंने प्रधानमंत्री को प्रजेंटेशन देने का फैसला किया है। इस बारे में अखिल भारतीय जमाखोर महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री खोरचंद स्टॉक ने पीएमओ को एक चिट‌्ठी लिखकर प्रधानमंत्री से समय मांगा है। उधर, केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने महासंघ की इस पहल का स्वागत किया है।
खोरचंद ने हिंदी सटायर के साथ बातचीत करते हुए कहा कि हम प्रधानमंत्री की इस अपील से गदगद हैं जिसमें उन्होंने राज्यों से जमाखोरों के खिलाफ सख्ती दिखाने की प्रार्थना की है। हालांकि हमें पूरा यकीन है कि राज्य सरकारें जमाखोरी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगी। केंद्र भी केवल राज्यों के भरोसे बैठा है। तो ऐसे समय में जबकि मानसून फेल होता नजर आ रहा है, राष्ट्रहित में हमारा भी यह फर्ज बनता है कि हम अपनी ओर से ही कोई पहल करें। अखिल भारतीय जमाखोर महासंघ के विशेषज्ञों की टीम ने एक प्रजेंटेशन तैयार किया है जिसमें हम बता सकते हैं कि इस समस्या से मिलजुलकर किस तरह निपटा जा सकता है। श्री खाेरचंद ने कहा कि देश के राजनीतिक सिस्टम को रन करने में जमाखोर जी-जान से याेगदान देते हैं और इस तरह प्रत्यक्ष रूप से देश में पॉलिटीकल डेमोक्रेसी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में एक बैलेंस्ड एप्रोच की जरूरत है। चूंकि जनता इस समय त्राही-त्राही कर रही है। तो ऐसे में अगर सरकार हमसे आग्रह करे तो हम राष्ट्रहित व जनहित में अपने कुछ हितों की कुर्बानी देने में पीछे नहीं रहेंगे।
प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने खोरचंद स्टॉक की चिट‌्ठी मिलने की पुष्टि की है, लेकिन अभी यह बताने से इनकार कर दिया कि प्रधानमंत्री इनसे कब मुलाकात करेंगे। इस बीच, केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने महासंघ की इस पहल का स्वागत करते हुए उम्मीद जताई है कि अब हम जमाखोरों की मदद से आने वाले समय में महंगाई को थामने में जरूर कामयाब होंगे।

गुरुवार, 26 जून 2014

रितेश देशमुख का छिछोरापन उनकी जबरदस्त मेहनत का नतीजा

देश को मिल सकी मस्ती, हे बेबी, ग्रैंड मस्ती और हमशकल्स जैसी युगांतकारी फिल्मों  की सौगात

 

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

मुंबई। फिल्म एक्टर रितेश देशमुख के जिस छिछोरेपन की आज लोग तारीफ करते नहीं अघाते, वह उनकी जबरदस्त मेहनत का नतीजा है। इसी मेहनत के बल पर आज वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं और उन्हाेंने हमशकल्स जैसी फिल्म को नई ऊंचाइयां दी है।
यह खुलासा छिछोरेपन के लिए उनके कोच रहे मास्टर झूमरूलाल ने किया है। मास्टर झूमरूलाल हमेशा लो प्रोफाइल रहे हैं और बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी हैं कि रितेश जैसे हीरे को तराशने में उनका कितना योगदान रहा है। उन्होंने हिंदी सटायर के साथ बातचीत में कहा कि वे रितेश को पहली नजर में देखकर ही समझ गए थे कि यह लड़का फिल्मों में छिछोरेपन के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा। हालांकि उनके पिता एक राजनेता थे और चाहते थे कि रितेश राजनीति में आए। रितेश अगर राजनीति में जाते तो वहां भी सफल होते क्योंकि राजनीति में भी छिछोरी एक्टिंग वालों का बड़ा जलवा रहता है। लेकिन इंद्रकुमार और साजिद खान जैसे डायरेक्टरों की किस्मत से रितेश ने फिल्मों में काम करने का निश्चय किया और देश के लोगों को मस्ती, हे बेबी, ग्रैंड मस्ती और हमशकल्स जैसी युगांतकारी फिल्मों की सौगात मिल सकी।
रितेश जैसा बनने की प्रेरणा ले रहे हैं बच्चे: रितेश का फिल्मी छिछोरापन आज कई पैरेंट‌्स के लिए प्रेरणा बन गया है। वे चाहते हैं कि वास्तविक जीवन में भी उनके बच्चे रितेश जैसा बनें। हालांकि वे भूल जाते हैं कि फिल्म की कहानी और असली जीवन में काफी फर्क होता है। कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में रितेश ने भी कहा था कि फिल्मी फंतासी में वे जरूर हद से परे जाकर छिछोरापन कर पाते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में इतना छिछोरापन संभव नहीं है। उन्होंने बच्चों, खासकर किशोर आयुवर्ग के बच्चों और उनके अभिभावकों से इस अंतर को समझने की अपील की थी। यह इंटरव्यू यूट्यूब पर काफी वायरल हो चुका है।

मानसून ने रेलगाड़ी से सफर करने से किया इनकार, बैलगाड़ी की जिद ठानी

- सरकार के हाथ-पैर फूले, तलाशी जा रही है टि्वटर के जरिए आगे बढ़ाने की संभावना

 

जयजीत अकलेचा / Jayjeet Aklecha

यात्रा का सबसे सुरक्षित साधन।
 नई दिल्ली।
मानसून का इंतजार कर रहे आम लोगों के लिए एक और बुरी खबर है। मंगलवार रात को बिहार के छपरा के पास राजधानी एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद मानसून ने भारतीय रेलों में सफर करने से इनकार कर दिया है। अब उसने बैलगाड़ी से ही आगे की यात्रा करने की जिद ठान ली है। इस वजह से उसमें और भी देरी होने की आशंका बढ़ गई है, जिससे सरकार के हाथ-पैर फूल गए हैं।
माैसम विभाग के सूत्रों के अनुसार विशेष विमानों से मानसून को केरल तट पर उतारने के बाद उसे विभिन्न रेलगाड़ियों से अलग-अलग स्थानोें पर भिजवाया जा रहा था। इसका मकसद यही था कि पहले से ही लेट हो चुके मानसून को रेलगाड़ियों के माध्यम से जल्दी से जल्दी देश भर में पहुंचा दिया जाए। लेकिन यहीं पर गड़बड़ी हो गई। मौसम विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “सरकार भारतीय रेलवे की कार्यक्षमता का अाकलन करने में विफल रही। भारतीय रेलगाड़ियों की लेटलतीफी जगजाहिर है, लेकिन नई सरकार इसे क्यों नहीं समझ पाई, यह हैरान करने वाला है। शायद अनुभवहीनता के कारण ऐसा हुआ होगा।”
रेलगाड़ियों की इसी लेटलतीफी के कारण मानसून पहले ही लेट हो गया और रही-सही कसर बुधवार को हुए रेल हादसे ने पूरी कर दी। हालांकि इस ट्रेन में मानसून परिवार का कोई सदस्य सवार नहीं था, लेकिन हादसे का मानसून के दिलों-दिमाग पर इतना गहरा असर पड़ा है कि उसने आगे का सफर रेलगाड़ियों से करने से ही इनकार कर दिया है। सूत्रों के अनुसार मानसून का मानना है कि भारत में अब बैलगाड़ियां ही सफर का सबसे सुरक्षित साधन रह गई हैं और इसलिए वह आगे इसी में सफर करेगा।
सांसत में सरकार, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेगी! : सूत्रों के अनुसार मौसम विभाग ने मानसून के इस फैसले से अपने विभागीय मंत्री जितेंद्र सिंह को अवगत करवा दिया है। सिंह ने भी तुरंत पीएमओ से संपर्क कर उसे मानसून की जिद के बारे में जानकारी दी। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानसून की भावना का सम्मान करते हुए इस संभावना को तलाशने के निर्देश दिए है कि क्या उसे टि्वटर और फेसबुक के माध्यम से एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुंचाया जा सकता है? इससे मानसून न केवल जल्दी पहुंचेगा, बल्कि वह सुरक्षित भी रहेगा। चूंकि अब यह दक्षिण के राज्यों से आगे निकल गया है। ऐसे में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, जिनके अंतर्गत ही राजभाषा विभाग आता है, ने मानसून को आगे बढ़ाते समय हिंदी को प्राथमिकता देने का कहा है।

बुधवार, 25 जून 2014

मान्यता प्राप्त भगवान!

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
'भगवान' की मान्यता के लिए फार्म जमा करते संतनुमा लोग।

एक काउंटर पर बड़ी भीड़ है। काउंटर के बाहर भगवा से लेकर सफेद-पीले-लाल रंग के कपड़े पहने कई संत टाइप लोग लाइन लगाए खड़े हैं। पास में ही दो-चार आवारा कुत्ते झूम रहे हैं। लाइन से उठने वाले गांजे के धुएं का असर उन पर कुछ ज्यादा ही हो रहा है। यह एक्रीडिएशन सेंटर है और ये संतनुमा लोग ‘भगवान’ की मान्यता का फार्म जमा करने के लिए अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं।
‘जी, क्या नाम है आपका?’ खिड़की के भीतर बैठे बाबू ने पान की पीक पास में ही डस्टबीन की तरफ उछालने के बाद पूछा।
‘संत हरिप्रसाद पिता महासंत रामप्रसाद कावड़िया।’ एक मैले से पीले-चितकबरे कपड़े पहना व्यक्ति बोला।
‘इसीलिए...इसीलिए मैं कंफर्म कर रहा था। यहां हरप्रसाद लिख रखा है। महाराज, भगवान बनकर भक्तों को क्या ऐसी ही उल-जुलूल बातें बताओंगे।’ बाबू ने उसे हल्की से झिड़की दी।
‘जी, लाओ फार्म, मैं ठीक कर लूंगा।’
‘नेक्स्ट’ बाबू ने जोरदार आवाज लगाई। एक लंबा-चौड़ा मोटा-ताजा किस्म का बंदा आगे आया। नाम फकीरचंद। हालांकि उनकी तोंद से वे कहीं भी फकीर नजर नहीं आ रहे थे।
‘यह चिलम यहां तो फेेंक दो। आपको पता नहीं है कि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना प्रतिबंधित है।’ बाबू ने अपना रुतबा झाड़ा।
‘नादान बालक, मुझे रोकता है! भगवान बनते ही सबसे पहले मैं तुझे ही श्राप दूंगा।’
‘महाराज आवाज नीची, अभी आप मान्यता प्राप्त भगवान नहीं बने हैं। फाइल मेरे पास से ही ऊपर
 जाएगी, जान लीजिए।’
‘ओ, मैं तो मजाक कर रहा था बालक। इतनी जल्दी आपा खोना अच्छी बात नहीं है... काम तो हो जाएगा ना?’
‘हूम, नेक्स्ट।’ बाबू जरा जल्दी में है।
अंदर अफसर के पास फाइलों का ढेर लगा है। यहां का सिस्टम बहुत ही क्लियर है। जिसकी जितनी कृपा आएगी, भगवान बनने के उसके चांस उतने ही बढ़ जाएंगे। कई अनुभवी संतनुमा लोग इस सिस्टम का पूरा सम्मान करते हैं। वे तो लाइन में भी नहीं लगते। उन्हें मालूम है कि किस दलाल के माध्यम से वे आसानी से भगवान बन सकते हैं। अफसर भी ऐसे भावी भगवानों की पूरी इज्जत करते हैं। जरूरी है!
और ऊपर देवलोक में नारदजी यह देख-देखकर मुस्कुरा रहे हैं। वैसे तो वे हमेशा ही मुस्कुराते नजर आते हैं, लेकिन ऐसे मौकों पर उनकी मुस्कान कुछ ज्यादा ही चौड़ी हो जाती है। उन्होंने अपनी चिरपरिचित कुटील मुस्कान के साथ पास ही खड़े एक संत से पूछा, ‘महाराज, आपने भी क्या शिरडी में यही सब किया था!’
‘नारदजी, कैसी बात करते हो? मेरे दिल को जो अच्छा लगा, मैंने वह किया, गरीबों को भगवान समझकर उनकी सेवा की। पर देखते ही देखते लोगों ने मुझे भगवान बना दिया। अब इसमें मेरा क्या दोष?’
‘मतलब, आपके पास भगवान का एक्रीडिएशन कार्ड ही नहीं है?’ नारदजी ने हंसते हुए पूछा।
‘मुझे तो यही नहीं मालूम कि यह एक्रीडिएशन कार्ड होता क्या है?’
‘वाह, हमसे ही दिल्लगी कर रहे हो। सोने के सिंहासन पर बैठते हो और कहते हो कि आप भगवान ही नहीं हो।’ नारदजी बोले।
‘इसी बात का तो अफसोस है नारदजी। जिंदगी भर मैं पत्थरों पर सोया लेकिन अब मुझे सोने के सिंहासन पर बैठाया जा रहा है।’
‘तो आपका कहना है कि आपके भक्तों ने आपको तो स्वर्ण सिंहासन पर बैठा दिया और सादगी, गरीबों की सेवा जैसे आपके आदर्श विचारों को सिंहासन के नीचे खिसका दिया?’
‘मैं इस पर कोई कमेंट नहीं करुंगा, चाहे आप मुझे कितना भी उकसा लें। मैं आप जैसे पत्रकारों का मंतव्य खूब समझ रहा हूं। आप तो चाहते ही हैं कि कोई कंट्रोवर्सी पैदा हो। आजकल लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचने में वक्त नहीं लगता। मैं चलता हूं राम-राम।’

मैंने खुद कभी भगवान होने का दावा नहीं किया : साईं बाबा

नारद मुनि के साप्ताहिक करंट अफेयर्स प्रोग्राम 'एंजल्स एडवोकेट' में बोल रहे थे शिरडी वाले बाबा

देवलोक से विशेष संवाददाता।
शिरडी वाले साईं बाबा ने कहा है कि उन्होंने खुद कभी भी भगवान होने का दावा नहीं किया। यह तो भक्तों की श्रद्धा है जिसने उन्हें भगवान बना दिया। साईं बाबा बुधवार को देवलोक में नारद मुनि के साप्ताहिक वन टु वन करंट अफेयर्स प्रोग्राम 'एंजल्स एडवोकेट' में बोल रहे थे।
धरती पर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के इस विवादित बयान कि शिरडी के साईं, भगवान नहीं हैं और उनकी पूजा करना उचित नहीं है, पर टिप्पणी करते हुए साईं बाबा ने कहा, “ यह सच है कि मुझे किसी भी यूनिवर्सिटी ने 'भगवान' की मानद उपाधि नहीं दी और न ही किसी सरकारी विभाग से मुझे 'भगवान' का कोई एक्रेडिएशन ही हासिल हुआ है। मैंने कभी इसका दावा भी नहीं किया। इसलिए अगर शंकराचार्यजी कह रहे हैं कि मैं भगवान नहीं हूं तो उसमें गलत कुछ नहीं है। आखिर वे सदियों पुरानी परंपरा से आते हैं। बड़े-बड़े आश्रमों में रहते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं। मुझसे कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। अगर वे कुछ बोल रहे हैं तो वह सही ही होगा। मैं ठहरा फकीर।”
इस सवाल के जवाब में कि क्या यह आपके दोहरे चरित्र का परिचायक नहीं है कि आप बात तो फकीरी की करते हों, लेकिन धरती पर सोने के सिंहासन पर बैठते हो, साईंबाबा ने कहा,
इसी बात का तो अफसोस है नारदजी। जिंदगी भर मैं पत्थरों पर सोया लेकिन अब मुझे सोने के सिंहासन पर बैठाया जा रहा है। सादगी, गरीबों की सेवा जैसे मेरे उच्च विचारों को स्वर्ण सिंहासन के नीचे खिसका दिया गया है। 
हालांकि बाद में उन्होंने इस मुद्दे पर यह कहकर ज्यादा बातें करने से इनकार कर दिया कि आजकल लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचने में वक्त नहीं लगता है। इसलिए मैं यहां स्वर्ग में जैसा भी हूं, ठीक हूं। कुछ कहकर मामले को और तूल देना मेरी आदत नहीं है।

मंगलवार, 24 जून 2014

इराक संकट से निपटने के लिए अमेरिका ने रजनीकांत से लगाई गुहार

थलाइवा अच्छे दिन लाने की मुहिम में व्यस्त, खुद इराक नहीं जाएंगे, केवल बंधकों की मुक्ति के लिए अपना क्लोन भेजेंगे

जयजीत अकलेचा / Jayjeet Aklecha

बगदाद/चेन्नई। इराक संकट से निपटने के लिए अमेरिका ने रजनीकांत से गुहार लगाई है। अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा है कि अब केवल रजनीकांत ही दुनिया को आतंकवाद के पंजों से बचा सकते हैं। इस पर रजनीकांत की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों के अनुसार वे पहले से ही देश में अच्छे दिन लाने की एक गोपनीय मुहिम में व्यस्त हैं। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि वे इस मामले में कितनी मदद कर पाएंगे।
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी सोमवार काे बगदाद पहुंचे और उन्होंने देश के हालात का जायजा लिया। जिस तरह से आतंकी संगठन आईएसआईएस लगातार इराक के शहरों पर कब्जा जमाता जा रहा है, उससे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अब इराक में अमेरिकी सेना को भेजने से भी कोई हल नहीं निकलेगा। उन्हाेंने इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी से भी मुलाकात की। मलिकी ने भी उन्हें सुझाया कि इस संकट से केवल और केवल रजनी सर ही बाहर निकाल सकते हैं। भारत के साथ अच्छे रिश्तों की दुहाई देते हुए उन्हाेंने जॉन केरी से आग्रह किया कि वे खुद रजनीकांत से बात कर उन्हें इस कार्य के लिए राजी करें।
इसके बाद केरी ने तत्काल टेलीफोन पर रजनीकांत से बात की। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केरी ने उन्हें विश्व शांति का वास्ता देकर तत्काल इराक आने का आग्रह किया। इस पर रजनीकांत ने कहा कि इस छोटी-सी समस्या के लिए उन्हें इराक आने की जरूरत नहीं है। वे यहां चेन्नई से बैठकर ही इसका समाधान कर सकते हैं, लेकिन इस समय वे इससे भी बड़ी मुहिम में जुटे हुए हैं। उससे मुक्त होते ही वे आईएसआईएस को कुचल देंगे। हां, भारतीयों सहित अन्य तमाम बंधकों की रिहाई के लिए वे अपना क्लोन भेजने पर जरूर राजी हो गए हैं।
किस बड़ी मुहिम में जुटे हैं रजनी सर?
इराक संकट को सुलझाने से रजनीकांत के इनकार करने के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आखिर वे इतने व्यस्त कहां हैं? अंदरखाने सूत्रों से पता चला है कि वे इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आग्रह पर अच्छे दिन लाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। रजनीकांत के बारे में उनके फैंस की धारणा है कि वे कोई भी कार्य चुटकियों में कर सकते हैं, लेकिन इस काम में उन्हें पसीना आ रहा है। उनके एक विरोधी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि अब थलाइवा को पता चलेगा आटे-दाल का भाव।

रविवार, 22 जून 2014

कटहल चोरी हुए या भाग गए!


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
कभी ऐसे साथ नजर आते थे (फाइल फोटो)
नई दिल्ली। बिहार से जद यू के राज्यसभा सांसद महेंद्र प्रसाद के नई दिल्ली स्थित आवास से दो कटहलों की कथित चोरी के मामले में नया खुलासा हुअा है। अपनी प्रारंभिक जांच में पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि हो सकता है दोनों कटहल अपनी मर्जी से कहीं चले गए हो। पुलिस ने प्रेम प्रसंग की आशंका से इनकार नहीं किया है। गौरतलब है कि जानकारी मिलते ही पुलिस की एक जांच टीम गठित कर दी गई थी जो मामले के हर पहलू का बारीकी से परीक्षण कर रही है।
मामले के हाई प्रोफाइल होने के कारण फिलहाल पुलिस ऑन रिकॉर्ड कुछ भी कहने से बच रही है। पुलिस ने दोनों के फेसबुक अकाउंट की जानकारी और मोबाइल की काल डिटैल चैक करवाई है और इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि मामला लव अफेयर का हो सकता है।
इस बीच, बिहार से ही विपक्षी दल राजद के एक नेता का कहना है कि उनके राज्य के कुछ क्षेत्रों में सगोत्र प्रेम-प्रसंगों के मामले में प्रेमी-प्रेमिकाओं के अपहरण की वारदातें बढ़ रही हैं। इज्जत बचाने के नाम पर कई बार इनके परिजन ही इन वारदातों में शामिल पाए गए हैं। उन्होंने परोक्ष रूप से सांसद पर निशाना साधते हुए इस एंगल से भी मामले की जांच करवाने की मांग की।
 
यह तो मनुष्यों का प्रभाव है : समाजशास्त्री
इस बारे में एक वरिष्ठ समाजशास्त्री डॉ राजेंद्र भटनागर ने हिंदी सटायर के साथ बातचीत में कहा कि बदलते सामाजिक परिवेश में यह तो होना ही है। मनुष्यों के प्रभाव में आकर आज कटहलों ने ऐसा किया है। कल अन्य फल-फूल भी ऐसा ही करें तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

शनिवार, 21 जून 2014

शरद जोशी का व्यंग्य - रेल यात्रा

शरद जोशी/ Sharad Joshi

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रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति करती हैं। वे बम्‍बई से प्रगति करती हुई दिल्‍ली तक चली जाती हैं और वहाँ से प्रगति करती हुई बम्‍बई तक आ जाती हैं। अब यह दूसरी बात है कि वे बीच में कहीं भी रुक जाती हैं और लेट पहुँचती हैं। आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं तो किसी डिब्‍बे में घुस जाइए। बिना गहराई में घुसे आप सच्‍चाई को महसूस नहीं कर सकते।
जब रेलें नहीं चली थीं, यात्राएँ कितनी कष्‍टप्रद थीं। आज रेलें चल रही हैं, यात्राएँ फिर भी इतनी कष्‍टप्रद हैं। यह कितनी खुशी की बात है कि प्रगति के कारण हमने अपना इतिहास नहीं छोड़ा। दुर्दशा तब भी थी, दुर्दशा आज भी है। ये रेलें, ये हवाई जहाज, यह सब विदेशी हैं। ये न हमारा चरित्र बदल सकती हैं और न भाग्‍य।
भारतीय रेलें चिन्‍तन के विकास में बड़ा योग देती हैं। प्राचीन मनीषियों ने कहा है कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्‍य ख़ाली हाथ रहता है। क्‍यों भैया? पृथ्‍वी से स्‍वर्ग तक या नरक तक भी रेलें चलती हैं। जानेवालों की भीड़ बहुत ज्‍़यादा है। भारतीय रेलें भी हमें यही सिखाती हैं। सामान रख दोगे तो बैठोगे कहाँ? बैठ जाओगे तो सामान कहाँ रखोगे? दोनों कर दोगे तो दूसरा कहाँ बैठेगा? वो बैठ गया तो तुम कहाँ खड़े रहोगे? खड़े हो गये तो सामान कहाँ रहेगा? इसलिए असली यात्री वो जो हो खाली हाथ। टिकिट का वज़न उठाना भी जिसे कुबूल नहीं। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ये स्थिति मरने के बाद बतायी है। भारतीय रेलें चाहती हैं वह जीते-जी आ जाए। चरम स्थिति, परम हल्‍की अवस्‍था, ख़ाली हाथ्‍ा, बिना बिस्‍तर, मिल जा बेटा अनन्‍त में! सारी रेलों को अन्‍तत: ऊपर जाना है।
टिकिट क्‍या है? देह धरे को दण्‍ड है। बम्‍बई की लोकल ट्रेन में, भीड़ से दबे, कोने में सिमटे यात्री को जब अपनी देह तक भारी लगने लगती है, वह सोचता है कि यह शरीर न होता, केवल आत्‍मा होती तो कितने सुख से यात्रा करती। 

 रेल-यात्रा करते हुए अक्‍़सर विचारों में डूब जाते हैं। विचारों के अतिरिक्‍त वहाँ कुछ डूबने को होता भी नहीं। रेल कहीं भी खड़ी हो जाती है। खड़ी है तो बस खड़ी है। जैसे कोई औरत पिया के इंतज़ार में खड़ी हो। उधर प्‍लेटफ़ॉर्म पर यात्री खड़े इसका इंतज़ार कर रहे हैं। यह जंगल में खड़ी पता नहीं किसका इंतजार कर रही है। खिड़की से चेहरा टिकाये हम सोचते रहते हैं। पास बैठा यात्री पूछता है - "कहिए साहब, आपका क्‍या ख़याल है इस कण्‍ट्री का कोई फयूचर है कि नहीं?"
"पता नहीं।" आप कहते हैं, "अभी तो ये सोचिए कि इस ट्रेन का कोई फयूचर है कि नहीं?"
फिर एकाएक रेल को मूड आता है और वह चल पड़ती है। आप हिलते-डुलते, किसी सुंदर स्‍त्री का चेहरा देखते चल पड़ते हैं। फिर किसी स्‍टेशन पर वह सुंदर स्‍त्री भी उतर जाती है। एकाएक लगता है सारी रेल ख़ाली हो गयी। मन करता है हम भी उतर जाएँ। पर भारतीय रेलों में आदमी अपने टिकिट से मजबूर होता है। जिसका जहाँ का टिकिट होगा वह वहीं तो उतरेगा। उस सुन्‍दर स्‍त्री का यहाँ का टिकिट था, वह यहाँ उतर गयी। हमारा आगे का टिकिट है, हम वहाँ उतरेंगे।
भारतीय रेलें कहीं-न-कहीं हमारे मन को छूती हैं। वह मनुष्‍य को मनुष्‍य के क़रीब लाती हैं। एक ऊँघता हुआ यात्री दूसरे ऊँघते हुए यात्री के कन्‍धे पर टिकने लगता है। बताइए ऐसी निकटता भारतीय रेलों के अतिरिक्‍त कहाँ देखने को मिलेगी? आधी रात को ऊपर की बर्थ पर लेटा यात्री नीचे की बर्थ पर लेटे इस यात्री से पूछता है - यह कौन-सा स्‍टेशन है? तबीयत होती है कहूँ - अबे चुपचाप सो, क्‍यों डिस्‍टर्ब करता है? मगर नहीं, वह भारतीय रेल का यात्री है और भारतभूमि पर यात्रा कर रहा है। वह जानना चाहता है कि इस समय एक भारतीय रेल ने कहाँ तक प्रगति कर ली है?
आधी रात के घुप्‍प अँधेरे में मैं भारतभूमि को पहचानने का प्रयत्‍न करता हूँ। पता नहीं किस अनजाने स्‍टेशन के अनचाहे सिग्‍नल पर भाग्‍य की रेल रुकी खड़ी है। ऊपर की बर्थवाला अपने प्रश्‍न को दोहराता है। मैं अपनी ख़ामोशी को दोहराता हूँ। भारतीय रेलें हमें सहिष्‍णु बनाती हैं। उत्तेजना के क्षणों में शांत रहना सिखाती हैं। मनुष्‍य की यही प्रगति है।
Short version of रेल यात्रा 


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शरद जोशी का व्यंग्य - जिसके हम मामा हैं


शरद जोशी/ Sharad Joshi


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एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया।
'मामाजी! मामाजी!' - लड़के ने लपक कर चरण छूए।
वे पहचाने नहीं। बोले - 'तुम कौन?'
'मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?'
'मुन्ना?' वे सोचने लगे।
'हाँ, मुन्ना। भूल गए आप मामाजी! खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गए।'
'तुम यहाँ कैसे?'
'मैं आजकल यहीं हूँ।'
'अच्छा।'
'हाँ।'
मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर।
फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, नहा लें।
'मुन्ना, नहा लें?'
'जरूर नहाइए मामाजी! बनारस आए हैं और नहाएँगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?'
मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे।
बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब! लड़का... मुन्ना भी गायब!
'मुन्ना... ए मुन्ना!'
मगर मुन्ना वहाँ हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
'क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?'
'कौन मुन्ना?'
'वही जिसके हम मामा हैं।'
'मैं समझा नहीं।'
'अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।'
वे तौलिया लपेटे यहाँ से वहाँ दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला।
भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रो! चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना मैं चुनाव का उम्मीदवार। होनेवाला एम.पी.। मुझे नहीं पहचाना? आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।
समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं - क्यों साहब, वह कहीं आपको नजर आया? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं।
पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।


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मप्र के व्यापमं घोटाले के आरोपी स्टूडेंट‌्स को ग्वांटेनामो जेल भेजने की तैयारी

हाई-प्रोफाइल आरोपियों को गेस्ट हाउस में शिफ्ट किया जाएगा, ताकि वहां उनसे सौहार्द्रपूर्ण माहौल में गपशप हो सके


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
ग्वांटेनामो जेल : यहां भेजे जाएंगे स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट‌स।

भोपाल। मप्र में व्यापमं घोटाले की जांच में लगी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोपी छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को दुनिया की ‘ख्यातनाम’ जेलों में से एक ग्वांटेनामो जेल में ले जाकर पूछताछ करने पर विचार कर रही है। एसटीएफ का मानना है कि इस जेल में अच्छे-अच्छे दुर्दांत आतंकियों ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया। ऐसे में इन स्टूडेंट्स और उनके पैरेेंट‌्स से भी जुर्म कबुलवाने में उसे कोई दिक्कत नहीं होगी और वह मानवाधिकार आयोग की नजरों से भी बची रहेगी। इस बीच, इस मामले में गिरफ्त में अाए हाई-प्रोफाइल आरोपियों को गेस्ट हाउस में शिफ्ट करने की तैयारी है, ताकि वहां सौहार्द्रपूर्ण माहौल में उनके साथ गपशप हो सके।
सूत्रों के अनुसार मप्र हाईकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद एसटीएफ काफी दबाव में है। इसलिए उसने आनन-फानन में कई स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन अब इसके वरिष्ठ अधिकारी चाहते हैं कि अगली फटकार पड़ने से पहले ही वह कोई चमत्कार कर दिखाए। इसी फेर में एसटीएफ के एक सीनियर अफसर ने ग्वांटेनामो जेल का सुझाव दिया है। इस अफसर की मानें तो उसे गूगल और विकिपीडिया पर जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार गिरफ्तार छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों के लिए ग्वांटेनामो जेल ही उपयुक्त होगी। इस जेल की महिमा इतनी निराली है कि वहां जाते ही आराेपी अपना अपराध स्वीकार कर लेता है। इस अधिकारी का यह भी तर्क था कि अाराेपी छात्र-छात्राओं को सुविधाएं देने के संबंध में मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग ने जो अनावश्यक स्वत: संज्ञान लिया है, वह भी वहां निष्क्रिय हो जाएगा। क्योंकि इस जेल में तो एमनेस्टी इंटरनेशनल की नहीं चली तो राज्य मानवाधिकार आयोग क्या चीज है!
एसटीएफ से जुड़े एक अन्य सूत्र का कहना है कि इस संबंध में हुई बैठक में एक जूनियर अधिकारी ने सवाल उठाया था कि पकड़े गए स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों में से कुछ निर्दोष भी हो सकते हैं। इस पर उस सीनियर अफसर ने उसे यह कहकर चुप करा दिया कि यह तय करने वाले हम कौन होते हैं? ग्वांटेनामो बे जेल दूध का दूध, पानी का पानी कर देगी।
अमेरिकी अफसरों से सेटिंग की कोशिश : इस बीच, पता चला है कि ग्वांटेनामो जेल का अध्ययन करने के लिए एसटीएफ के एक अधिकारी को ग्वांटेनामो बे भेजा जा सकता है। यह जेल जिस जगह स्थित है, वह बहुत ही खूबसूरत तटीय इलाका है और इसलिए सभी अफसर वहां स्टडी टूर पर जाने का प्रयास कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार एक से ज्यादा अफसरों को भी वहां भेज सकती है, ताकि इतनी भाग-दौड़ के कारण हुई थकान दूर हो सके। चूंकि यह जेल अमेरिका के कब्जे में है, ऐसे में दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय में कुछ जुगाड़ के माध्यम से अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क करने का भी प्रयास किया जा रहा है।

शुक्रवार, 20 जून 2014

कांग्रेस के अच्छे दिन आए, सड़कों पर जश्न का माहौल

घर का कोना छोड़कर बाहर निकले राहुल, दिग्गी ने दी अगला प्रधानमंत्री बनने की बधाई


जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
कांग्रेस में अच्छे दिनों का जश्न!
नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा रेल भाड़े में बढ़ोतरी करते ही कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के अच्छे दिनों की शुरुआत हो गई। शुक्रवार को इसकी आधिकारिक घोषणा भी कर दी गई। इसके बाद देशभर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने ढोल नगाड़े बजाकर मिठाइयां बांटी और जमकर आतिशबाजी की। कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने इस सफलता के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को बधाई दी है।
शुक्रवार दोपहर को जैसे ही देश के टीवी चैनलों पर विपक्षी दलों के लिए अच्छे दिनों का ऐलान किया गया, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तुरंत अपने घर से बाहर आए और अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे। उनके साथ कुछ जमीनी नक्शों के साथ रॉबर्ट वाड्रा भी थे। वहां उनका कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेताओं ने स्वागत किया। बाद में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए राहुल ने इसे अपनी मम्मी सोनिया गांधी की नीतियों की जीत बताया। उन्होंने कहा कि मम्मी ने उनसे धैर्य रखने को कहा था। उसके बाद से ही वे अपने घर के एक कोने में बैठकर इस दिन का इंतजार कर रहे थे। इस बीच, दिग्गी ने एक ट्वीट कर राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री बनने की बधाई दी। उन्होंने ट्वीट में लिखा, 'राहुल बाबा, अच्छे दिन आ गए, तैयारी कर लीजिए।'
 
लालू संग थिरकी आजम की भैंसें : अच्छे दिनों की खबर मिलते ही सपा नेता आजम खान की भैंसें भी खुद को थिरकने से रोक नहीं सकीं। रंभा, काली, कनकटी और श्यामा सहित तमाम भैंसों ने उम्मीद जताई कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्दी ही उनके मालिक उन्हें फिर से सही ढंग से दूह सकेंगे। भैंसों ने अपने पुराने मित्र लालू को भी बधाई देते हुए कहा कि इससे उनके साथ चारा खाने की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

शरद जोशी का व्यंग्य - भूतपूर्व प्रेमिकाओं को पत्र

शरद जोशी/ Sharad Joshi

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देवी, माता या बहन,
अब मात्र यही संबोधन बचे हैं, जिनसे इस देश में एक पुराना प्रेमी अपनी अतीत की प्रेमिकाओं को पुकार सकता है। वे सब कोमल मीठे शब्द, जिनका उपयोग मैं प्रति मिनट दस की रफ्तार से नदी किनारों और पार्क की बेंचों पर तुम्हारे लिए करता था, तुम्हारे विवाह की शहनाइयों के साथ हवा हो गए। अब मैं तुम्हें भाषण देने वाले की दूरी से माता और बहन कहकर आवाज दे सकता हूं। वक्त के गोरखनाथ ने मुझे भरथरी बना दिया और तुम्हें माता पिंगला। मैं अपनी राह लगा और तुम अपनी। आत्महत्या ना तुमने की, ना मैंने। मेरे प्रेमपत्रों को चूल्हे में झोंक तुमने अपने पति के लिए चाय बनाई और मैंने पत्रों की इबारतें कहानियों में उपयोग कर पारिश्रमिक लूटा। 'साथ मरेंगे, साथ जिएंगे' के वे वचन जो हमने एक दूसरे को दिए थे, किसी राजनीतिक पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वायदों की तरह खुद हमने भुला दिए। वे तीर जिनसे दिल बिंधे थे, वक्त के सर्जन ने निहायत खूबसूरती से ऑपरेशन कर निकाल दिए और तुम्हारी आंखें, जो अपने जमाने में तीरों का कारखाना रही थीं, अब शान्त और बुझी हुई रहने लगीं, मानो उनका लाइसेंस छिन गया।
मेरी एक्स-प्राणेश्वरी कुन्तला (मैं तुम्हारा वास्तविक नाम शकुन्तला नहीं लिखता क्योंकि तुम्हारे उस झक्की पति को पता लग जाएगा), तुम मेरी जिंदगी में तब आई थी, जब मुझे 'प्रेम' शब्द समझने के लिए डिक्शनरी टटोलनी पड़ती थी। पत्र लेखन में बतौर एक्सरसाइज किया करता था। घर की देहरी पर बैठा मैं मुगल साम्राज्य के पतन के कारण रटता और तुम सामने नल पर घड़े भरतीं या रस्सिया कूदतीं। मानती हो कि मैंने अपनी प्रतिभा के बल पर तुम्हें आखें मिलाना और लजाना सिखाया। मैंने तुम्हें ज्योमैट्री सिखाते वक्त बताया था कि यदि दो त्रिभुजों की भुजाएं बराबर हों तो कोण भी बराबर रहते हैं और सिद्ध भी कर दिखाया था। पर वह गलत था। बाद में तुम्हारे पिताजी ने मुझे समझाया कि अगर दहेज बराबर हो तो कोण भी बराबर हो जाते हैं और भुजाएं भी बराबर हो जाती हैं। मैं अपने बिन्दु पर परपेण्डिकुलर खड़ा तुम्हें ताकता रहा और तुम आग के आसपास गोला बना चजुर्भज हो गईं।
कुन्तला, मुझे तुम अपने बच्चों की ट्यूशन पर क्यों नहीं लगा लेतीं? तुम तीनों बच्चों के लिए अस्सी रुपए उस मास्टर को देती हो। मैं तुम्हारे बच्चे पढ़ा दूंगा, मुझे दिया करो वे रुपए। सच कहता हूं कि एक शान्त मास्टर की तरह घर आऊंगा। प्रेम की तीव्रता से अधिक जरूरी है अस्सी की आमदनी निरंतर बनी रहे। तुम मेरी प्रेम की पीड़ा दूर नहीं कर सकीं, तुम मेरी गरीबी की पीड़ा दूर कर सकती हो।


Short version of भूतपूर्व प्रेमिकाओं को पत्र 

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हरिशंकर परसाई का व्यंग्य - प्रेम की बिरादरी

हरिशंकर परसाई/ Harishankar Parsai
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उनका सबकुछ पवित्र है। जाति में बाजे बजाकर शादी हुई। पत्नी ने सात जन्मों में किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा। उन्होंने अपने लड़के-लड़की की शादी मंडप में की। लड़की के लिए दहेज दिया और लड़के के लिए लिया। एक लड़की खुद पसंद की और लड़के की पत्नी बना दिया।
फुरसत में रहते हैं। दूसरों की कलंक चर्चा में समय काटते हैं। जो समय फिर भी बच जाता है उसमें मूंछ के सफेद बाल उखाड़ते हैं और बर्तन बेचने वाली की राह देखते हैं। अभी उस दिन दांत खोदते आए और कलंक चर्चा का चूर्ण फांकना शुरू कर दिया, 'आपने सुना, अमुक साहब की लड़की अमुक लड़के के साथ भाग गई और दोनों ने शादी कर ली। कैसा बुरा जमाना आ गया है।'  मैं जानता हूं कि वे बुरा जमाना आने से दुखी नहीं, सुखी हैं। जितना बुरा जमाना आएगा, वे उतने ही सुखी होंगे। तब वे यह महसूस करेंगे कि इतने बुरे जमाने में भी हम अच्छे हैं। वे कहने लगे, 'और जानते हैं लड़का-लड़की अलग जाति के हैं?' मैंने पूछा, 'मनुष्य जाति के तो हैं ना?' वे बोले, 'हां, उसमें क्या शक है?'
ये घटनाएं बढ़ रही हैं। दो तरह की चिट्ठियां पेटेंट हो गई हैं। उनके मजमून ये हैं। जिन्हें भागकर शादी करना है वे और जिन्हें नहीं करना है, वे भी इनका उपयोग कर सकते हैं।
चिट्ठी नं. 1
पूज्य पिताजी,
मैंने यहां रमेश से शादी कर ली है। हम अच्छे हैं। आप चिंता मत करिए। आशा है आप और अम्मा मुझे माफ कर देंगे।
आपकी बेटी
सुनीता।
चिट्ठी नं. 2
प्रिय रमेश,
मैं अपने माता-पिता के विरुद्ध नहीं जा सकती। तुम मुझे माफ कर देना। तुम जरूर शादी कर लेना और सुखी रहना। तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन में सुख नहीं मिलेगा। ह्रदय से तो मैं तुम्हारी हूं। (4-5 साल बाद आओगे तो पप्पू से कहूंगी - बेटा, मामाजी को नमस्ते करो।)
तुम्हारी
विनीता।
इसके बाद एक मजेदार क्रम चालू होता है। मां-बाप कहते हैं, वह हमारे लिए मर चुकी है। अब हम उसका मुंह नहीं देखेंगे। फिर कुछ महीने बाद मैं उनके यहां जाता हूं तो वही लड़की चाय लेकर आती है। मैं उनसे पूछता हूं, 'यह तो आपके लिए मर चुकी थी। 'वे जवाब देेते हैं, 'आखिर लड़की ही तो है।' और मैं सोचता रह जाता हूं कि जो आखिर में लड़की है वह शुरू में लड़की क्यों नहीं थी?
एक लड़की दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी। लड़का अच्छा कमाता था लेकिन लड़की के माता-पिता ने शादी अपनी ही जाति के लड़के से कर दी जो कम तो कमाता ही था, पत्नी को पीटता भी था। एक दिन मैंने उन सज्जन से कहा, 'सुना है वह लड़की को पीटता है।'  वे जवाब देते भी तो क्या देते, सिवा इसके कि संतोष है कि जातिवाले से पिट रही है।
इस सबको देखते हुए आगे चलकर युवक-युवती के मिलने पर प्रेम का दृश्य ऐसा होगा -
युवक - क्या आप ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण हैं तो किस प्रकार के ब्राह्मण हैं?
युवती - क्यों, क्या बात है?
युवक - कुछ नहीं! जरा आपसे प्रेम करने का इरादा है।
युवती - मैं तो खत्री हूं।
युवक - तो फिर मेरा आपसे प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि मैं ब्राह्मण हूं।

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शरद जोशी का व्यंग्य - नेतृत्व की ताकत

 शरद जोशी/ Sharad Joshi

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नेता शब्द दो अक्षरों से बना है। ‘ने’ और ‘ता’। इनमें एक भी अक्षर कम हो, तो कोई नेता नहीं बन सकता। मगर हमारे शहर के एक नेता के साथ अजीब ट्रेजडी हुई। एक दिन यह हुआ कि उनका ‘ता’ खो गया। सिर्फ ‘ने’ रह गया। इतने बड़े नेता और ‘ता’ गायब। उन्हें सेक्रेटरी ने बताया कि सर आपका ‘ता’ नहीं मिल रहा। आप सिर्फ ‘ने’ से काम चला रहे हैं। नेता बड़े परेशान। नेता का मतलब होता है, नेतृत्व करने की ताकत। ताकत चली गई, सिर्फ नेतृत्व रह गया। ‘ता’ के साथ ताकत गई। तालियां गईं, जो ‘ता’ के कारण बजती थीं। नेता बहुत चीखे। पर जिसका ‘ता’ चला गया, उस नेता की सुनता कौन है? खूब जांच हुई पर ‘ता’ नहीं मिला। नेता ने एक सेठ से कहा, ‘यार हमारा ‘ता’ गायब है। अपने ताले में से ‘ता’ हमें दे दो।’ सेठ बोला, ‘यह सच है कि ‘ले’ की मुझे जरूरत रहती है, क्योंकि ‘दे’ का तो काम नहीं पड़ता, मगर ताले का ‘ता’ चला जाएगा तो लेकर रखेंगे कहां? सब इनकम टैक्स वाले ले जाएंगे। कभी तालाबंदी करनी पड़ी तो? ऐसे वक्त तू तो मजदूरों का साथ देगा। मुझे ‘ता’ थोड़े देगा।’ सेठ को नेता ने बहुत समझाया। जब तक नेता रहूंगा, मेरा ‘ता’ आपके ताले का समर्थन करेगा। आप ‘ता’ मुझे दे दें और फिर ‘ले’ आपका। लेते रहिए, मैं कुछ नहीं कहूंगा। सेठ जी नहीं माने। विरोधी मजाक बनाने लगे। अखबारों में खबर उछली कि नेता का ‘ता’ नहीं रहा। अगर ‘ने’ भी चला गया तो यह कहीं का नहीं रहेगा। खुद नेता के दल के लोगों ने दिल्ली जाकर शिकायत की। आपने एक ऐसा नेता हमारे सिर थोप रखा है, जिसके पास ‘ता’ नहीं है।
नेता दुखी था पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जनता के पास जाए और कबूल करे कि उसमें ‘ता’ नहीं है। एक दिन उसने अजीब काम किया। कमरा बंद कर जूता में से ‘ता’ निकाला और ‘ने’ से चिपकाकर फिर नेता बन गया। यद्यपि उसके व्यक्तित्व से दुर्गन्ध आ रही थी। मगर वह खुश था कि चलो नेता तो हूं। पार्टी ने भी कहा, जो भी नेता है, ठीक है। समस्या सिर्फ यह रह गई कि लोगों को पता चल गया। आज स्थिति यह है कि लोग नेता को देखते हैं और अपना जूता हाथ में उठा लेते हैं। उन्हें डर है कि कहीं वह इनके जूतों में से ‘ता’ ना चुरा ले। पत्रकार पूछते हैं, ‘सुना आपका ‘ता’ गायब हो गया था?’ वह धीरे से कहते हैं, ‘गायब नहीं हुआ था। माताजी को चाहिए था तो मैंने दे दिया। आज मैं जो भी हूं, उनके ही कारण हूं। वह ‘ता’ क्या मेरा ‘ने’ भी ले लें तो मैं इनकार नहीं करूंगा।’ नेता की नम्रता देखते ही बनती है। लेकिन मेरा विश्वास है मित्रो जब भी संकट आएगा, नेता का ‘ता’ नहीं रहेगा, लोग निश्चित ही जूता हाथ में ले बढ़ेंगे और प्रजातंत्र की प्रगति में अपना योगदान देंगे।

Short version of  नेतृत्व की ताकत

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हरिशंकर परसाई का व्यंग्य - विज्ञापन में बिकती नारी

हरिशंकर परसाई/ Harishankar Parsai

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मैंने तय किया पंखा खरीदा जाए। अखबार में पंखों के विज्ञापन देखे। हर कंपनी के पंखे सामने स्त्री है। एक पंखे से उसकी साड़ी उड़ रही है और दूसरे से उसके केश। एक विज्ञापन में तो सुंदरी पंखे के फलक पर ही बैठी हुई है। मुझे डर लगा, कहीं किसी ने स्विच दबा दिया तो? ऐसी बदमाशियां आजकल होती रहती हैं। मैं सुंदरी के लिए चिंतित हुआ। पिछले साल मेरा एक महीना ऐसी ही चिंता में कटा था। एक पत्रिका ने मुखपृष्ठ सजाने के लिए चित्र छापा था - तीसरी मंजिल पर स्त्री पैर लटकाए बैठी है। मैं परेशान हो गया। रात को एकाएक नींद खुल जाती और मैं सोचता पता नहीं उसका क्या हुआ! कहीं गिर तो नहीं पड़ी। अगला अंक जब आया और मैंने देखा कि लड़की उतर गई है, तब चैन पड़ा।
सोचा, यही पंखा खरीद लूं। स्त्री को उतारकर घर पहुंचा दूं और कहूं- बहनजी, इस तरह पंखे पर नहीं बैठा करते। पंखे तो बिक ही जाएंगे। तुम उनके लिए जान जोखिम में क्यों डालती हो?
मैंने बहुत पंखे देखे। किसी के आगे कोई पुरुष बैठा हुआ हवा नहीं ले रहा है। लेकिन कमोबेश हर चीज का यही हाल है। टूथपेस्ट के इतने विज्ञापन हैं, मगर हर एक में स्त्री ही 'उजले दांत' दिखा रही है। एक भी ऐसा मंजन बाजार में नहीं है जिससे पुरुष के दांत साफ हो जाएं। या कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस देश का आदमी मुंह साफ करता ही नहीं। यह सोचकर बड़ी घिन आई कि ऐसे लोगों के बीच में रहता हूं, जो मुंह भी साफ नहीं करते।
इस विज्ञापन में लड़के ने एक खास मोटरसाइकिल खरीद ली है। पास ही लड़की खड़ी है। बड़े प्रेम से उसे देखकर मुस्करा रही है। अगर लड़का दूसरी कंपनी की साइकिल खरीद लेता, तो लड़की उससे कहती - हटो, हम तुमसे नहीं बोलते। तुमने अमुक मोटरसाइकिल नहीं खरीदी।
ये चार-पांच सुंदरियां उस युवक की तरफ एकटक देख रही हैं।
-सुंदरियों, तुम उस युवक पर क्यों मुग्ध हो? वह सुंदर है, इसलिए?
-नहीं, वह अमुक मिल का कपड़ा पहने है, इसलिए। वह किसी दूसरी मिल का कपड़ा पहन ले, तो हम उसकी तरफ देखेंगी भी नहीं। हम मिल की तरफ से मुग्ध होने की ड्यूटी पर हैं?
सुंदरी का कोई भरोसा नहीं। अगर कोई सुंदरी पुरुष से लिपट जाए तो यह सोचना भ्रम है कि वह तुमसे लिपट रही है। शायद वह रामप्रसाद मिल्स के सूट के कपड़े से लिपट रही है। अगर कोई सुंदरी तुम्हारे पांवों की तरफ देख रही है, तो वह 'सतयुगी समर्पिता' नारी नहीं है। वह तुम्हारे पांवों में पड़े धर्मपाल शू कंपनी के जूते पर मुग्ध है। सुंदरी आंखों में देखे तो जरूरी नहीं कि वह आंख मिला रही है। वह शायद 'नेशनल ऑप्टिशियन्स' के चश्मे से आंख मिला रही है। प्रेम व सौंदर्य का सारा स्टॉक कंपनियों ने खरीद लिया है। अब ये उन्हीं की मारफत मिल सकते हैं।

Short version of विज्ञापन में बिकती नारी 

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14 सितंबर को मनाया जाएगा ‘इंग्लिश डे’, तमिलनाडु में तमिल दिवस

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha
नई दिल्ली। इस साल से अब देशभर में हर 14 सितंबर को ‘इंग्लिश डे’ मनाया जाएगा। इस आशय का एक सर्कुलर केंद्र सरकार शीघ्र ही जारी करने जा रही है। केंद्र ने यह कदम तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि की उस आपत्ति के मददेनजर उठाया है जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार हिंदी को बढ़ावा देकर अन्य भाषाओं की उपेक्षा कर रही है। 
प्रधानमंत्री कार्यालय में उच्च पदस्थ सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘इंग्लिश डे’ मनाने की विधिवत् घोषणा 14 सितंबर को ही नई दिल्ली में अायोजित एक कार्यक्रम में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। वे अपनी जिंदगी में पहली बार लिखा हुआ भाषण पढ़ेंगे क्योंकि यह अंग्रेजी में होगा। इस अवसर पर उन विशिष्ट लोगाें का सम्मान भी किया जाएगा जो अपनी मातृभाषा छोड़कर अंग्रेजी में बोलना पसंद करते हैं। ‘इंग्लिश डे’ के उपलक्ष्य में पूरे देशभर में इंग्लिश एसे कॉम्पीटिशन, इंग्लिश डिबैट कॉम्पीटिशन, इंग्लिश स्पीच कॉम्पीटिशन, इंग्लिश क्वीज जैसी कई प्रतियोगिताएं करवाई जाएंगी। सूत्र ने यह भी साफ कर दिया कि इस दिवस पर संबंधित राज्य चाहें तो अपना-अपना भाषा दिवस मना सकते हैं, जैसे तमिलनाडु में तमिल दिवस, कर्नाटक में कन्नड़ दिवस, महाराष्ट्र में मराठी दिवस इत्यादि। 
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने गुुरुवार को हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करने संबंधी एक निर्देश जारी किया था। इसके बाद से ही हाथ में मुद‌दा आने के कारण करुणानिधि काफी खुश नजर आ रहे थे। बाद में अपनी खुशी दबाते हुए पत्रकारों से बातचीत में केंद्र के इस रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हाेंने कहा था कि यह कदम गैर हिंदी भाषी लोगों को दोयम दर्जे की तरह समझने का है। इस आलोचना से हरकत में आई नरेंद्र मोदी सरकार ने बिजली से भी अधिक तेजी से कार्रवाई करते हुए ‘इंग्लिश डे’ मनाने का फैसला ले लिया। इसका आधिकारिक सर्कुलर एक-दो दिन में जारी हो जाएगा।

गुरुवार, 19 जून 2014

वाॅव, मैं शर्मिंदा हूं! अमेजिंग!!

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

कार्टून: गौतम चक्रवर्ती
हाल ही में एक भारतीय ने किसी अन्य देश में रह रहे अपने एक मित्र को पत्र लिखा था। इसमें उसने शर्मसार होने के फीलगुड का अद्भुत वर्णन किया है। कुछ मित्रों ने तो इसे पढ़कर फेसबुक पर यहां तक सुझाव दे डाला है कि अब हमें ‘शर्म’ नामक दसवें रस की व्युत्पत्ति कर ही देनी चाहिए। खैर, सुझाव अपनी जगह। इस पत्र के मुख्य अंश:
हैलो मिस्टर जाॅन,
आपके लिए यह बड़े गर्व की बात है कि आपको हिंदी आती है। मुझे अंग्रेजी नहीं आती है और इसके लिए वाकई मैं शर्मिंदा हूं। हिंदी में लिखते हुए मैं जो शर्मिंदगी महसूस कर रहा हूं, उसकी अनुभूति ही अलग है। वैसे मुझे इस बात का गर्व है कि यहां रोजाना शर्मसार होने की कोई न कोई वजह मिल ही जाती है। वाव! शर्मिंदा होने की भी क्या फीलिंग होती है। मैं फेसबुक पर नहीं हूं, न ही ट्विटर पर हूं। मैं तो शर्म से गड़ा जा रहा हूं। वाॅव! शर्मिंदा होने से आगे की स्टेज है शर्म से गड़ा जाना। इसका एहसास ही खूबसूरत है। आप तो फील ही नहीं कर सकते। मेरे पास स्मार्टफोन भी नहीं, वो क्या बोलते है वाॅट्सअप! उसका तो सवाल ही नहीं। अगेन वाॅव! वाॅट ए शर्मिंदगी।
और ताजा शर्मिंदगी हाॅकी में उठानी पड़ी है। हाॅकी वल्र्डकप में हम नौवें स्थान पर रहे। नेशनल शेमनेस। मैं तो शर्मसार हूं ही, हाॅकी के कर्णधारों के चेहरों को तो देखो। शर्म से फूलकर कुप्पा हो रहे हैं। शर्मिंदगी के इस भाव पर कोई भी वारा जाए। अमेजिंग!! पर हाय फुटबाॅल। काश, हमें भी वल्र्ड कप में खेलने का मौका मिलता। हम आठ-आठ दस-दस गोल से हारते। कितने मस्त शर्मसार होते।
पत्र बड़ा हो रहा है, इसलिए मैं सीधे मुद्दे की शर्म पर आता हूं। आप भी सोच रहे होंगे कि मैं पाॅलिटिकल शेम की बात क्यों नहीं कर रहा हूं। दरअसल, मैं बच रहा था। कहीं आपको काॅम्लैक्स नहीं आ जाए। लेकिन यह सच है कि पाॅलिटिकल शेम के बगैर बात अधूरी ही रह जाएगी। यहां पाॅलिटिकल करप्शन, भाई-भतीजावाद, एक-दूसरे की टांग खिंचाई... सब अद्भुत है। यह सब हमको इतना शर्मसार करते हैं कि लगता है अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है। आपको इस बात पर बेहद गुस्सा आएगा कि हमारे (आपके) यहां ऐसा क्यों नहीं है! हमने ऐसा क्या बिगाड़ा था! सही बात है भाई, यह इनजस्टिस है। भगवान सब को शर्मिंदा होने का मौका दें। हम तो प्रार्थना ही कर सकते हैं, और क्या!
खैर, आप चाहें तो हमारे यहां के सबसे बड़े स्टेट में आकर भरपूर शर्मिंदा हो सकते हैं। आप जैसे फाॅरेनर टूरिस्टों के लिए यहां की सरकार ने जंगल टूरिज्म डिपार्टमेंट ही खोल दिया है। आप वहां के कुछ पेड़ों से लटककर शर्म की फीलिंग कर सकते हैं। उम्मीद है कि जब आप यहां आओगे तो शर्मसार होने के दो-चार मौके आपके सामने भी आ जाएंगे। खुद लाइव शर्मसार हो जाना।
तो देर मत करो। गारंटी है, आपको शर्मिंदा करने की हम भरपूर कोशिश करेंगे। सड़क पर पहली पीक मैं ही मारुंगा। डन रहा!
आपका ही
एक भारतीय दोस्त

पैसा और समय बचाने फेसबुक पर होंगी कैबिनेट की बैठकें!

प्रयोग सफल रहा तो संसद की बहस भी सोशल मीडिया के माध्यम से हो सकेगी

जयजीत अकलेचा/ Jayjeet Aklecha

अब फेसबुक से चलेगी सरकार!
नई दिल्ली। सरकारी खर्चों में कटौती करने, कामकाज में तेजी लाने और सरकार को पेशेवर बनाने के मकसद से केंद्र की मोदी सरकार ने कैबिनेट की बैठकें फेसबुक पर करने का निर्णय लिया है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन कैबिनेट मंत्रियों को भी अपने फेसबुक अकाउंट खुलवाने के निर्देश दिए हैं, जिनके अब तक ऐसे अकाउंट नहीं हैं। हालांिक विपक्ष ने इसे केवल आईएसओ 9001 सर्टिफिकेट हासिल करने की सस्ती कवायद करार िदया है।
पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार मोदी कैबिनेट के कई मंत्री पहले से ही टि‌‌वटर और फेसबुक पर अपने फैसलांे की जानकारी देते आ रहे हैं। एेसे में प्रधानमंत्री का मत था कि क्यों न कैबिनेट की बैठकें ही सोशल मीडिया के माध्यम से कर ली जाएं। इसका एक फायदा तो यह होगा िक बैठकों में आने-आने और नाश्ता-पानी पर होने वाला खर्च बचेगा। दूसरा कैबिनेट के फैसलांे के बारे में तत्काल बैठे-बैठे ही आम जनता को अपडेट कर दिया जाएगा। इससे लोगों के बीच संदेश जाएगा कि सरकार काम कर रही है। 
संसदीय कार्यवाही पर ही दोहराएंगे प्रयोग! : सूत्रों का कहना है कि अगर कैबिनेट की बैठकों को लेकर यह प्रयोग सफल रहता है तो इसे आगे संसद में होने वाली कार्यवाही पर भी दोहराया जा सकता है। इसके लिए सभी सांसद फेसबुक पर चैटिंग जैसे ऑप्शनों का इस्तेमाल कर बहस कर सकेंगे। इसके लिए फेसबुक से भी विशेष प्रावधान करने का आग्रह किया जा सकता है। हालांकि कोई भी फैसला लेने से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाकर सर्वसम्मति ली जाएगी। माना जा रहा है िक कांग्रेस से आपत्ति आ सकती है, क्योंकि राहुल गांधी खुद फेसबुक फ्रेंडली नहीं हैं।
केवल आईएसओ 9001 सर्टिफिकेट हासिल करना मकसद : विपक्ष
विपक्षों दलांे ने मोदी सरकार की इस पहल को केवल आईएसओ 9001 सर्टिफिकेट हासिल करने की सस्ती कवायद करार िदया है। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सरकार तेज काम करने का नाटक करना चाहती है और इसका मकसद केवल आईएसओ 9001 सर्टिफिकेट हासिल करना है। यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस इसका विरोध केवल इसलिए कर रही है क्योंकि राहुल गांधी फेसबुक फ्रेंडली नहीं हैं, राजीव ने इसका खंडन करते हुए कहा कि राहुलजी का अपना खुद का फेसबुक अकाउंट है। जैसे ही उन्हें फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट मिलेगी, वे उस पर एक्टिव हो जाएंगे।